ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड : अध्याय 5
पुण्यक-व्रत की माहात्म्य-कथा का कथन श्रीनारायण कहते हैं– नारद! इस प्रकार व्रत के विधान को सुनकर दुर्गा का मन प्रसन्नता से खिल उठा। तत्पश्चात उन्होंने अपने स्वामी शिव जी से दिव्य एवं शुभकारिणी व्रत-कथा के विषय में जिज्ञासा प्रकट की। श्रीपार्वती जी ने पूछा– नाथ! यह व्रत तथा इसका फल और विधान बड़ा ही अद्भुत है। भला, किसने इस व्रत को प्रकाशित किया है? इसकी श्रेष्ठ कथा का वर्णन कीजिये। श्रीमहादेव जी बोले– प्रिये! मनु की पत्नी शतरूपा, जो पुत्र के दुःख से दुःखी थी, ब्रह्मलोक में आकर ब्रह्मा जी से बोली। शतरूपा ने कहा– ब्रह्मन! आप जगत का धारण-पोषण करने वाले तथा सृष्टि के कारणों के भी कारण हैं। अतः आप मुझे यह बतलाने की कृपा करें कि किस उपाय से वन्ध्या को पुत्र उत्पन्न हो सकता है; क्योंकि ब्रह्मन! उसका जन्म, ऐश्वर्य और धन सब निष्फल ही होता है। पुत्रवानों के घर में पुत्र के बिना अन्य किसी वस्तु की शोभा नहीं होती। तपस्या और दान से उत्पन्न हुआ पुण्य जन्मान्तर में सुखदायक होता है, परंतु पुत्र पिता को (इसी जन्म में) सुख, मोक्ष और हर्ष प्रदान करता है। निश्चय ही पुत्र ‘पुत्’ नामक नरक से रक्षा करने का हेतु होता है। ब्रह्मन! आप पुत्रताप से संतप्त हुई मुझ अबला को पुत्र-प्राप्ति का उपाय बतला दें, तभी कल्याण है; अन्यथा मैं पति के साथ वन में चली जाऊँगी। आप प्रजा को धारण करने वाली पृथ्वी, धन, ऐश्वर्य और राज्य आदि ग्रहण कीजिये; क्योंकि तात! हम दोनों पुत्रहीनों को पुत्र के बिना इन सबसे क्या प्रयोजन है? साक्षात ब्रह्मा जी से यों कहकर शतरूपा फूट-फूटकर रुदन करने लगी। तब उसकी ओर देखकर कृपालु ब्रह्मा जी ने कहा। ब्रह्मा जी बोले– वत्से! जो समस्त ऐश्वर्य आदि का कारणरूप, सम्पूर्ण मनोरथों का दाता तथा शुभकारक है, उस सुखदायक पुत्र-प्राप्ति के उपाय का वर्णन करता हूँ, सुनो। सुव्रते! माघमास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी के दिन शुद्ध काल में सर्वस्व प्रदान करने वाले श्रीकृष्ण की आराधना करके इस उत्तम पुण्यक-व्रत का अनुष्ठान करना चाहिये। कण्वशाखा में इस व्रत का वर्णन किया गया है। इसे पूरे वर्ष भर तक करना चाहिये। यह सारी अभीष्ट-सिद्धियों का प्रदाता तथा सम्पूर्ण विघ्नों का विनाशक है। व्रतकाल में वेदोक्त द्रव्यों का दान करना चाहिये। शुभे! तुम भी इस व्रत का अनुष्ठान करके विष्णु के समान पराक्रमी पुत्र प्राप्त करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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