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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 5
श्री राधा के विशाल भवन एवं अन्तःपुर की शोभा का वर्णन, ब्रह्मा आदि को दिव्य तेजःपुञ्ज के दर्शन तथा उनके द्वारा उन तेजोमय परमेश्वर की स्तुति भगवान नारायण कहते हैं– सम्पूर्ण गोलोक का दर्शन करके उन तीनों देवताओं के मन में बड़ा हर्ष हुआ। वे फिर श्रीराधा के प्रधान द्वार पर आये। उस द्वार का निर्माण उत्तम रत्नों और मणियों से हुआ था। वहाँ दो वेदिकाएँ थीं। हल्दी के रंग की उत्तम मणि से, जिसमें हीरे का भी सम्मिश्रम था, बनाये गये श्रेष्ठ रत्न-मणिनिर्मित किवाड़ उस द्वार की शोभा बढ़ाते थे। देवताओं ने देखा, उस द्वार पर रक्षा के लिये परम उत्तम वीरभानु की नियुक्ति हुई है। वे रत्नों के बने हुए सिंहासन पर बैठे हैं, पीताम्बर पहने हैं तथा रत्नमय आभूषणों से विभूषित हैं। उनके मस्तक पर रत्नमय मुकुट उद्भासित हो रहा है। विचित्र चित्रों से अलंकृत उस अद्भुत एवं विचित्र द्वार की रक्षा करते हुए द्वारपाल वीरभानु के पास जा देवताओँ ने प्रसन्नतापूर्वक अपना सारा अभिप्राय निवेदन किया। तब द्वारपाल ने निःशंक होकर उन देवेश्वरों से कहा– ‘देवगण! मैं इस समय आज्ञा लिये बिना आप लोगों को भीतर नहीं जाने दूँगा।’ मुने! यह कहकर द्वारपाल ने श्रीकृष्ण के स्थान पर सेवकों को भेजा और उनकी आज्ञा पाकर देवताओं को अंदर जाने की अनुमति दी। उससे पूछकर वे तीनों देवता दूसरे उत्तम द्वार पर गये, जो पहले से अधिक विचित्र, सुन्दर और मनोहर था। नारद! उस द्वार पर नियुक्त हुए चन्द्रभानु नामक द्वारपाल दिखायी दिये, जिनकी अवस्था किशोर थी। शरीर की कान्ति सुन्दर एवं श्याम थी। वे सोने का बेंत हाथ में लिये रत्नमय आभूषणों से विभूषित हो रत्नमय सिंहासन पर विराजमान थे। पाँच लाख गोपों का समूह उनकी शोभा बढ़ा रहा था। उनसे पूछकर देवता लोग तीसरे उत्तम द्वार पर गये, जो दूसरे से भी अधिक सुन्दर, विचित्र तथा मणियों के तेज से प्रकाशित था। नारद! वहाँ द्वार की रक्षा में नियुक्त सूर्यभानु नामक द्वारपाल दिखायी दिये, जो दो भुजाओं से युक्त, मुरलीधारी, किशोर, श्याम एवं सुन्दर थे। उनके दोनों गालों पर दो मणिमय कुण्डल झलमला रहे थे। रत्न कुण्डलधारी सूर्यभानु श्रीराधा और श्रीकृष्ण के परम प्रिय एवं श्रेष्ठ सेवक थे। वे सम्राट की भाँति नौ लाख गोपों से घिरे रहते थे। उनसे पूछकर देवता लोग चौथे द्वार पर गये, जो उन सभी द्वारों से विलक्षण, रमणीय तथा मणियों की दिव्य दीप्ति से उद्दीप्त दिखायी देता था। अद्भुत एवं विचित्र रत्नसमूह से जटित होने के कारण उस द्वार की मनोहरता और बढ़ गयी थी। उसकी रक्षा के लिये व्रजराज वसुभानु नियुक्त थे। देवता लोग उनसे मिले। वे किशोर-अवस्था के सुन्दर एवं श्रेष्ठ पुरुष थे। हाथ में मणिमय दण्ड लिये हुए थे। रमणीय आभूषणों से विभूषित हो रत्नसिंहासन पर बैठे थे। पके बिम्बफल के समान लाल ओष्ठ और मन्द-मन्द मुस्कान से वे अत्यन्त मनोहर दिखायी देते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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