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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 22
ग्वाल-बालों का श्रीकृष्ण की आज्ञा से तालवन के फल तोड़ना, धेनुकासुर का आक्रमण, श्रीकृष्ण के स्पर्श से उसे पूर्वजन्म की स्मृति और उसके द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन, वैष्णवी माया से पुनः उसे स्वरूप की विस्मृति, फिर श्रीहरि के साथ उसका युद्ध और वध, बालकों द्वारा सानन्द फल-भक्षण तथा सबका घर को प्रस्थान भगवान नारायण कहते हैं– नारद! एक दिन राधिकानाथ श्रीकृष्ण बलराम तथा ग्वालबालों के साथ उस तालवन में गये, जो पके फलों से भरा हुआ था। उन तालवृक्षों की रक्षा गर्दभरूपधारी एक दैत्य करता था, जिसका नाम धेनुक था। उसमें करोड़ों सिंहों के समान बल था। वह देवताओं के दर्प का दलन करने वाला था। उसका शरीर पर्वत के समान और दोनों नेत्र कूप के तुल्य थे। उसके दाँत हरिस की पाँत के समान और मुँह पर्वत की कन्दरा के सदृश था। उसकी चंचल एवं भयानक जीभ सौ हाथ लंबी थी। नाभि तालाब के समान जान पड़ती थी। उसका शब्द बड़ा भयंकर होता था। तालवन को सामने देख उन श्रेष्ठ ग्वालबालों को बड़ा हर्ष हुआ। उनके मुखारविन्द पर मुस्कराहट छा गयी। वे कौतुकवश श्रीकृष्ण से बोले। बालकों ने कहा– हे श्रीकृष्ण! हे करुणासिन्धो! हे दीनबन्धो! आप सम्पूर्ण जगत के पालक हैं। महाबली बलराम जी के भाई हैं तथा समस्त बलवानों में श्रेष्ठ हैं। प्रभो! आधे क्षण के लिये हमारे निवेदन पर ध्यान दीजिये। भक्तवत्सल! हम आपके भक्त-बालकों को बड़ी भूख लगी है। इधर सामने ही स्वादिष्ट फल और सुन्दर ताल-फल हैं, उनकी ओर दृष्टिपात कीजिये। हम इन फलों को तोड़ने के लिये वृक्षों को हिलाना और नाना रंगों के फूलों तथा दुर्लभ पके फलों को गिराना चाहते हैं। श्रीकृष्ण! यदि आप आज्ञा दें तो हम ऐसी चेष्टा कर सकते हैं; परंतु इस वन में गर्दभरूपधारी बलवान दैत्य धेनुक रहता है, जिस पर सम्पूर्ण देवता भी विजय नहीं पा सके हैं। वह महान बल-पराक्रम से सम्पन्न है। सब देवता मिलकर भी उसे रोकने में सफल नहीं हो पाते। वह राजा कंस का महान सहायक है। समस्त प्राणियों का हिंसक तथा ताल-वनों का रक्षक है। जगत्पते! वक्ताओं में श्रेष्ठ! आप भलीभाँति सोचकर हमसे कहिये। हम जो काम करना चाहते हैं वह उचित है या अनुचित? हम इस करें या न करें। बालकों की यह बात सुनकर भगवान मधुसूदन उनसे मधुर वाणी में सुखदायक वचन बोले। श्रीकृष्ण ने कहा– ग्वालबालों! तुम लोग तो मेरे साथी हो, तुम्हें दैत्यों से क्या भय है? वृक्षों को तोड़कर हिलाकर जैसे चाहो, बेखटके इन फलों को खाओ। श्रीकृष्ण की आज्ञा पाकर बलशाली गोपबालक उछले और वृक्षों के शिरों पर चढ़ गये। वे भूखे थे; इसलिये फल लेना चाहते थे। नारद! उन्होंने अनेक रंग के स्वादिष्ट, सुन्दर और पके हुए फल गिराये। कितने ही बालकों ने वृक्ष तोड़ डाले, कितनों ने उन्हें बारंबार हिलाया। कई बालक वहाँ कोलाहल करने लगे और कितने ही नाचने लगे। वृक्षों से उतरकर वे बलशाली बालक जब फल लेकर जाने लगे, तब उन्होंने उस गर्दभरूपधारी महाबली, महाकाय, घोर दैत्यशिरोमणि धेनुक को बड़े वेग से आते देखा। वह भयंकर शब्द कर रहा था। उसे देखकर सब बालक रोने लगे। उन्होंने भय के कारण फल त्याग दिये और बारंबार जोर-जोर से ‘कृष्ण-कृष्ण’ का कीर्तन आरम्भ कर दिया। वे बोले– ‘हे करुणानिधान कृष्ण! आओ हमारी रक्षा करो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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