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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 88-89
श्रीकृष्ण का नन्द को दुर्गा-स्तोत्र सुनाना तथा व्रज लौट जाने का आदेश देना, नन्द का श्रीकृष्ण से चारों युगों के धर्म का वर्णन करने के लिए प्रार्थना करना श्रीकृष्ण ने कहा- हे तात! चेत करो। पिता जी! होश में आ जाओ। अरे! चराचरसहित यह सारा संसार जल के बुलबुले की भाँति क्षणध्वंसी है; अतः महाभाग! मोह त्याग दो और उन महाभागा माया की- जो परात्परा, ब्रह्मस्वरूपा, परमोत्कृष्टा, संपूर्ण मोह का उच्छेद करने वाली, मुक्ति-प्रदायिनी और सनातनी विष्णुमाया हैं- स्तुति करो। नन्द जी! त्रिपुर- वध के समय भयंकर महायुद्ध में भयभीत होने पर शम्भु ने जिस स्तोत्र द्वारा स्तवन करके महामाया के प्रभाव से त्रिपुरा सुर का वध किया था वह स्तोत्रराज जो सारे अज्ञान का उच्छेदक और संपूर्ण मनोरथों का पूरक है; मैं आपको इस सभा में प्रदान करूँगा, सुनिये। श्री नन्द जी बोले- जगदीश्वर! तुम वेदों के उत्पादक, निर्गुण और परात्पर हो; अत: भक्तवत्सल! मनुष्यों के सम्पूर्ण विघ्नों के विनाश, दुःखों के प्रशमन, विभूति, यश और मनोरथ सिद्दि के लिए दुर्गतिनाशिनी जगज्जननी महादेवी का वह परम दुर्लभ, गोपनीय, परमोत्तम एकमात्र स्तोत्र मुझ विनीत भक्त को अवश्य प्रदान करो। श्रीभगवान ने कहा- वैश्येन्द्र! पूर्वकाल में नारायण के उपदेश तथा ब्रह्मा की प्रेरणा से युद्ध से भयभीत हुए भगवान शंकर ने जिसके द्वारा स्तवन किया था और जो मोह-पाश को काटने वाला है; उस परम अद्भुत स्तोत्र का वर्णन करता हूँ, सुनो। नारायण ने शिव को शत्रु के चंगुल में फँसा देखकर यह स्तोत्र ब्रह्मा को बतलाया; तब ब्रह्मा ने रणक्षेत्र में रथ पर पड़े हुए शिव को बतलाते हुए कहा- ‘शंकर! शूरवीरों द्वारा प्राप्त हुए संकट की शान्ति के लिए तुम उन दुर्गतिनाशिनी दुर्गा का- जो आद्या, मूलप्रकृति और ब्रह्मस्वरूपिणी हैं- स्तवन करो। सुरेश्वर! यह मैं तुमसे श्रीहरि की प्रेरणा से कह रहा हूँ; क्योंकि शक्ति की सहायता के बिना कौन किसको जीत सकता है?’ ब्रह्मा की बात सुनकर शंकर के स्नान करके धुले हुए वस्त्र धारण किये, फिर चरणों को धोकर हाथ में कुश ले आचमन किया। इस प्रकार पवित्र हो भक्तिपूर्वक सिर झुकाकर और अंजलि बाँधकर वे विष्णु का ध्यान करते हुए दुर्गा का स्मरण करने लगे। श्री महादेव जी ने कहा- दुर्गति का विनाश करने वाली महादेवि दुर्गे! मैं शत्रु के चंगुल में फँस गया हूँ; अतः कृपामयि! मुझ अनुरक्त भक्त की रक्षा करो, रक्षा करो। महाभागे जगदम्बिके! विष्णुमाया, नारायणी, सनातनी, ब्रह्मस्वरूपा, परमा और नित्यानन्दस्वरूपिणी- ये तुम्हारे ही नाम हैं। तुम ब्रह्मा आदि देवताओं की जननी हो। तुम्हीं सगुण रूप से साकार और निर्गुण रूप से निराकार हो। सनातनि! तुम्हीं माया के वशीभूत हो पुरुष और माया से स्वयं प्रकृति बन जाती हो तथा जो इन पुरुष प्रकृति से परे हैं; उस परब्रह्म को तुम धारण करती हो। तुम वेदों की माता परात्परा सावित्री हो। वैकुण्ठ में समस्त संपत्तियों की स्वरूपभूता महालक्ष्मी, क्षीरसागर में शेषशायी नारायण की प्रियतमा मर्त्यलक्ष्मी, स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी और भूतल पर राजलक्ष्मी तुम्हीं हो। तुम पाताल में नागादिलक्ष्मी, घरों में गृहदेवता, सर्वशस्यस्वरूपा तथा संपूर्ण ऐश्वर्यों का विधान करने वाली हो। तुम्हीं ब्रह्मा की रागाधिष्ठात्री देवी सरस्वती हो और परमात्मा श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिदेवी भी तुम्हीं हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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