ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 47
आदि गौ सुरभी देवी का उपाख्यान नारद जी ने पूछा– ब्रह्मन्! वह सुरभी देवी कौन थी, जो गोलोक से आयी थी? मैं उसके जन्म और चरित्र सुनना चाहता हूँ। भगवान नारायण बोले– नारद! देवी सुरभी गोलोक में प्रकट हुई। वह गौओं की अधिष्ठात्री देवी, गौओं की आदि, गौओं की जननी तथा सम्पूर्ण गौओं में प्रमुख है। मुने! मैं सबसे पहली सृष्टि का प्रसंग सुना रहा हूँ, जिसके अनुसार पूर्वकाल में वृन्दावन में उस सुरभी का ही जन्म हुआ था। एक समय की बात है। गोपांगनाओं से घिरे हुए राधापति भगवान श्रीकृष्ण कौतूहलवश श्रीराधा के साथ पुण्य-वृन्दावन में गये। वहाँ वे विहार करने लगे। उस समय कौतुकवश उन स्वेच्छामय प्रभु के मन में सहसा दूध पीने की इच्छा जाग उठी। तब भगवान ने अपने वामपार्श्व से लीलापूर्वक सुरभी गौ को प्रकट किया। उसके साथ बछड़ा भी था। वह दुग्धवती थी। उस सवत्सा गौ को सामने देख सुदामा ने एक रत्नमय पात्र में उसका दूध दुहा। वह दूध सुधा से भी अधिक मधुर तथा जन्म और मृत्यु को दूर करने वाला था। स्वयं गोपीपति भगवान श्रीकृष्ण ने उस गरम-गरम स्वादिष्ट दूध को पीया। फिर हाथ से छूटकर वह पात्र गिर पड़ा और दूध धरती पर फैल गया। उस दूध से वहाँ एक सरोवर बन गया। उसकी लंबाई और चौड़ाई सब ओर से सौ-सौ योजन थी। गोलोक में वह सरोवर ‘क्षीरसरोवर’ नाम से प्रसिद्ध हुआ है। गोपिकाओं और श्रीराधा के लिये वह क्रीड़ा-सरोवर बन गया। भगवान की इच्छा से उस क्रीड़ावापी के घाट तत्काल अमूल्य दिव्य रत्नों द्वारा निर्मित हो गये। उसी समय अकस्मात असंख्य कामधेनु प्रकट हो गयीं। जितनी वे गौएँ थीं, उतने ही बछड़े भी उस सुरभी गौ के रोमकूप से निकल आये। फिर उन गौओं के बहुत-से पुत्र-पौत्र भी हुए, जिनकी संख्या नहीं की जा सकती। यों उस सुरभी देवी से गौओं की सृष्टि कही गयी, जिससे सम्पूर्ण जगत व्याप्त है। मुने! पूर्वकाल में भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सुरभी की पूजा की थी। तत्पश्चात् त्रिलोकी में उस देवी की दुर्लभ पूजा का प्रचार हो गया। दीपावली के दूसरे दिन भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से देवी सुरभी की पूजा सम्पन्न हुई थी। यह प्रसंग मैं अपने पिता धर्म के मुख से सुन चुका हूँ। महाभाग! देवी सुरभी का ध्यान, स्तोत्र, मूलमन्त्र तथा पूजा की विधि वेदोक्त क्रम मैं तुमसे कहता हूँ, सुनो। ‘ऊँ सुरभै नमः’ सुरभी देवी का यह षडक्षर-मन्त्र है। एक लाख जप करने पर मन्त्र सिद्ध होकर भक्तों के लिये कल्पवृक्ष का काम करता है। ध्यान और पूजन यजुर्वेद में सम्यक प्रकार से वर्णित हैं। जो ऋद्धि, वृद्धि, मुक्ति और सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली हैं; जो लक्ष्मीस्वरूपा, श्रीराधा की सहचरी, गौओं की अधिष्ठात्री, गौओं की आदि जननी, पवित्ररूपा, पूजनीया, भक्तों के अखिल मनोरथ सिद्ध करने वाली हैं तथा जिनसे यह सारा विश्व पावन बना है, उन भगवती सुरभी की मैं उपासना करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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