विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 105
भीष्मक द्वारा रुक्मिणी के विवाह का प्रस्ताव, शतानन्द का उन्हें श्रीकृष्ण के साथ विवाह करने की सम्मति देना, रुक्मी द्वारा उसका विरोध और शिशुपाल के साथ विवाह करने का अनुरोध, भीष्मक का श्रीकृष्ण तथा अन्यान्य राजाओं को निमंत्रित करना श्रीनारायणजी कहते हैं- नारद! विदर्भ देश में भीष्मक नाम के एक राजा राज्य करते थे, जो नारायण के अंश से उत्पन्न हुए थे। वे विदर्भदेशीय नरेशों के सम्राट, महान बल-पराक्रम से संपन्न, पुण्यात्मा, सत्यवादी, समस्त संपत्तियों के दाता, धर्मिष्ठ, अत्यंत महिमाशाली, सर्वश्रेष्ठ और समादृत थे। उनके एक कन्या थी, जिसका नाम रुक्मिणी था। वह महालक्ष्मी के अंश से उत्पन्न थी तथा नारियों में श्रेष्ठ, अत्यंत सौंदर्यशालिनी, मनोहारिणी और सुंदरी स्त्रियों में पूजनीया थी। उसमें नयी जवानी का उमंग था। वह रत्ननिर्मित आभूषणों से विभूषित थी। उसके शरीर की कान्ति तपाये हुए सुवर्ण की भाँति उद्दीप्त थी। वह अपने तेज से प्रकाशित हो रही थी तथा शुद्धसत्त्वस्वरूपा, सत्यशीला, पतिव्रता, शान्त दमपरायणा और अनन्त गुणों की भण्डार थी। वह शरत्पूर्णिमा के चंद्रमा के सदृश शोभाशालिनी थी। उसके नेत्र शरत्कालीन कमल के से थे और उसका मुख लज्जा से अवनत रहता था। अपनी उस सुंदरी युवती कन्या को सहसा विवाह के योग्य देखकर उत्तम व्रत का पालन करने वाले, धर्मस्वरूप एवं धर्मात्मा राजा भीष्मक चिन्तित हो उठे। तब वे अपने पुत्रों, ब्राह्मणों तथा पुरोहितों से विचार-विमर्श करने लगे। भीष्मक बोले- सभासदो! मेरी यह सुंदरी कन्या बढ़कर विवाह के योग्य हो गयी हैं; अतः मैं इसके लिए मुनिपुत्र, देवपुत्र अथवा राजपुत्र- इनमें से किसी अभीष्ट उत्तम वर का वरण करना चाहता हूँ। अतः आपलोग किसी ऐसे योग्य वर की तलाश करो, जो नवयुवक, धर्मात्मा, सत्यसंध, नारायणपरायण, वेद-वेदांग का विशेषज्ञ, पण्डित, सुंदर, शुभाचारी, शान्त, जितेन्द्रिय, क्षमाशील, गुणी, दीर्घायु, महान कुल में उत्पन्न और सर्वत्र प्रतिष्ठित हो। राजाधिराज भीष्म की बात सुनकर महर्षि गौतम के पुत्र शतानन्द, जो वेद-वेदांग के पारगामी विद्वान, यथार्थज्ञानी, प्रवचनकुशल, विद्वान, धर्मात्मा, कुलपुरोहित, भूतल पर संपूर्ण तत्त्वों के ज्ञाता और समस्त कर्मों में निष्णात थे, राजा से बोले। शतानन्द ने कहा- राजेंद्र! तुम तो स्वयं ही धर्म के ज्ञाता तथा धर्मशास्त्र में निपुण हो; तथापि मैं वेदोक्त प्राचीन इतिहास का वर्णन करता हूँ, सुनो। जो परिपूर्णतम परमेश्वर ब्रह्मा के भी विधाता हैं; ब्रह्मा, शिव और शेष द्वारा वन्दित, परमज्योतिः स्वरूप, भक्तानुग्रहमूर्ति, समस्त प्राणियों के परमात्मा, प्रकृति से परे, निर्लिप्त, इच्छारहित और सबके कर्मों के साक्षी हैं; वे स्वयं श्रीमान नारायण पृथ्वी का भार उतारने के लिए भूतल पर वसुदेव नन्दन के रूप में अवतीर्ण हुए हैं। राजेंद्र! उन परिपूर्णतम को कन्या-दान करके तुम अपनी सौ पीढ़ियों के साथ गोलोक में जाओगे। अतः उन्हें कन्या देकर परलोक में सारूप्य-मुक्ति प्राप्त कर लो और इस लोक में सर्वपूज्य तथा विश्व के गुरु के गुरु हो जाओ। विभो! सर्वस्व दक्षिणा में देकर महालक्ष्मी-स्वरूपा रुक्मिणी को उन्हें समर्पित कर दो और अपने जन्म-मरण के चक्कर को नष्ट कर डालो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |