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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 118
मणिभद्र का शिवजी को सेनासहित श्रीकृष्ण के पधारने की सूचना देना, शिव जी का बाण की रक्षा के लिए दुर्गा से कहना, दुर्गा का बाण को युद्ध से विरत होने की सलाह देना श्रीनारायण कहते हैं- नारद! इस प्रकार गणेश को समझाकर शिव जी महल के भीतर गये। वहाँ दुर्गतिनाशिनी दुर्गा, भैरवी, भद्रकाली, उग्रचण्डा और कोटरी रमणीय सिंहासनों पर विराजमान थीं। उन सबने सहसा उठकर जगदीश्वर शिव को नमस्कार किया। तत्पश्चात गणेश, पराक्रमी कार्तिकेय, बाण, वीरभद्र, स्वयं नन्दी, सुनन्दक, महामंत्री महाकाल, आठों भैरव, सिद्धेंद्र, योगीन्द्र और एकादश रुद्र- ये सभी वहाँ आ गये। इसी बीच सिंह द्वार पर पहरा देने वाला स्वयं मणिभद्र वहाँ आया और उन परमेश्वर शिव से बोला। मणिभद्र ने कहा- महेश्वर! बलदेव, प्रद्युम्न, साम्ब, सात्यकि, महाराज उग्रसेन, स्वयं भीम, अर्जुन, अक्रूर, उद्धव और शक्रनन्दन जयन्त तथा जो विधि के भी विधाता हैं, जिनकी कान्ति करोड़ों कामदेवों की शोभा को छीने लेती है, वनमाला जिनकी शोभा बढ़ा रही है, सात गोप- पार्षद श्वेत चँवरों द्वारा जिनकी सेवा कर रहे हैं, जो करोड़ों सूर्यों के समान कान्तिमान अनुपम चक्र धारण करते हैं; वे परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण बहुमूल्य रत्नों के सारभाग से निर्मित परम रमणीय उत्तम रथ में कौमोद की गदा, अमोघ शूल और विश्वसंहारकारी महाशंख पाञ्चजन्य रखकर यादवों की असंख्य सेनाओं के साथ पधार गये हैं। प्रभो! बलदेव ने हल के द्वारा लाखों मल्लों का कचूमर निकाल दिया है और उद्यानों की चहारदीवारी को तोड़-फोड़ डाला है। वे द्वारपालों का वध करके महाद्वार में घुस आये हैं। ऐसा सुनकर महादेव जी उस सुर समाज में पार्वती, भद्रकाली, स्कन्द, गणपति, आठों भैरवों, एकादश रुद्रों, वीरभद्र, महाकाल, नन्दी तथा सभी नवों सेनापतियों से बोले। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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