ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 45
परशुराम को गौरी का स्तवन करने के लिये कहकर विष्णु का वैकुण्ठ-गमन, परशुराम का पार्वती की स्तुति करना श्रीनारायण कहते हैं– नारद! इस प्रकार पार्वती को समझा-बुझाकर भगवान विष्णु परशुराम से हितकारक, तत्त्वस्वरूप, नीति का साररूप और परिणाम में सुखदायक वचन बोले। विष्णु ने कहा– राम! तुमने अकल्याणकर मार्ग पर स्थित हो क्रोधवश जो गणेश का दाँत तोड़ डाला है, इससे तुम श्रुति के मतानुसार इस समय सचमुच ही अपराधी हो। अतएव मेरे द्वारा बतलाये हुए स्तोत्र से देवश्रेष्ठ गणपति का स्तवन करके पुनः काण्वशाखा में कहे हुए स्तोत्र द्वारा जगज्जननी दुर्गा की स्तुति करो। ये जगदीश्वर श्रीकृष्ण की परा शक्ति एवं बुद्धिस्वरूपा हैं। इनके रुष्ट हो जाने पर तुम्हारी बुद्धि नष्ट हो जायेगी। ये सर्वशक्तिस्वरूपा हैं। जगत इन्हीं से शक्तिमान हुआ है। यहाँ तक कि जो प्रकृति से परे और निर्गुण हैं, वे श्रीकृष्ण भी इन्हीं से शक्तिशाली हुए हैं। इस शक्ति के बिना ब्रह्मा भी सृष्टिरचना में समर्थ नहीं हैं। हम– ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर इन्हीं से प्राप्त हुए हैं। द्विजवर! पूर्वकाल में जब असुरों ने देवसमुदाय को अपने अधीन कर लिया था, उस भयंकर समय में ये सती सम्पूर्ण देवताओं के तेज से आविर्भूत हुई थीं। तत्पश्चात श्रीकृष्ण की आज्ञा से इन्होंने असुरों का वध करके देवताओं का पद उन्हें प्रदान किया। फिर दक्ष की तपस्या के कारण दक्षपत्नी के गर्भ से जन्म लिया। उस जन्म में सती शंकर की भार्या हुईं। पुनः पति की निन्दा के कारण उस शरीर को त्यागकर इन्होंने शैलराज की पत्नी के गर्भ से जन्म धारण किया। फिर तपस्या करके योगीन्द्रों के गुरु के गुरु शंकर को पाया और श्रीकृष्ण की सेवा से श्रीकृष्ण के अंशभूत गणपति को पुत्ररूप में प्राप्त किया। बालक! जिनका तुम नित्य ध्यान करते हो, क्या उन्हें नहीं जानते? वे भगवान श्रीकृष्ण ही अपने अंश से पार्वती-पुत्र होकर प्रकट हुए हैं। इसलिये जो मंगलस्वरूपा, कल्याणदायिनी, शिवपरायणा, मंगल की कारण और मंगल की अधीश्वरी हैं; उन शिवप्रिया दुर्गा की तुम हाथ जोड़ सिर झुकाकर शिवा के स्तोत्रराज द्वारा, जिसे पूर्वकाल में त्रिपुरों के भयंकर वध के अवसर पर ब्रह्मा की प्रेरणा से शंकर जी ने स्तवन किया था, उससे स्तुति करो। नारद! यों कहकर भगवान विष्णु शीघ्र ही वैकुण्ठ को चले गये। श्रीहरि के चले जाने पर परशुराम हरि का स्मरण करके विष्णुप्रदत्त स्तोत्र द्वारा, जो सम्पूर्ण विघ्नों का नाशक तथा धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष का कारण है; उन दुर्गा की स्तुति करने को उद्यत हुए। उन्होंने गंगा के शुभ जल में स्नान करके धुले हुए वस्त्र धारण किये। फिर अंजलि बाँधकर भक्तेश्वर गुरु को प्रणाम किया। फिर आचमन करके दुर्गा को सिर झुकाकर नमस्कार किया। उस समय भक्ति के कारण उनके कंधे झुके हुए थे, आँखों में आनन्दाश्रु छलक आये थे और सारा अंग पुलकायमान हो गया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |