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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 14
यशोदा के यमुना स्नान के लिये जाने पर श्रीकृष्ण द्वारा दही-दूध-माखन आदि का भक्षण तथा बर्तनों को फोड़ना, यशोदा का उन्हें पकड़कर वृक्ष से बाँधना, वृक्ष का गिरना, गोप-गोपियों तथा नन्दजी का यशोदा को उपालम्भ देना, नल-कूबर और रम्भा को शाप प्राप्त होने तथा उससे मुक्त होने की कथा भगवान नारायण कहते हैं– नारद! एक दिन नन्दरानी यशोदा स्नान करने के लिए यमुना तट पर गयीं। इधर मधुसूदन श्रीकृष्ण दही-माखन आदि से भरे-पूरे घर को देखकर बड़े प्रसन्न हुए। घर में जो दही, दूध, घी, तक्र और मनोहर मक्खन रखा हुआ था, वह सब आप भोग लगा गये। छकड़े पर जो मधु, मक्खन और स्वस्तिक (मिष्ठान्न-विशेष) लदा था, उसे भी खा-पीकर आप कपड़ों से मुँह पोंछने की तैयारी कर रहे थे। इतने में ही गोपी यशोदा नहाकर अपने घर लौट आयीं। उन्होंने बालकृष्ण को देखा। घर में दही, दूध आदि के जितने मटके थे, सब फूटे और ख़ाली दिखायी दिये। मधु आदि के जो बर्तन थे, वे भी एकदम ख़ाली हो गये थे। यह सब देखकर यशोदा मैया ने बालकों से पूछा- ‘अरे! यह तो बड़ा अद्भुत कर्म है। बच्चो! तुम सच-सच बताओ, किसने यह अत्यन्त दारुण कर्म किया है?’ यशोदा की बात सुनकर सब बालक एक साथ बोल उठे- ‘मैया! हम सच कहते हैं, तुम्हारी लाला ही सब खा गया, हम लोगों को तनिक भी नहीं दिया है।’ बालकों का यह वचन सुनकर नन्दरानी कुपित हो उठीं और लाल-लाल आँखें किये बेंत लेकर दौड़ीं। इधर गोविन्द भाग निकले। मैया उन्हें पकड़ न सकीं। भला, जो शिव आदि के ध्यान में भी नहीं आते, योगियों के लिये भी जिन्हें पकड़ पाना अत्यन्त कठिन है; उन्हें यशोदा जी कैसे पकड़ पातीं? यशोदा जी पीछा करके थक गयीं। शरीर पसीने से लथपथ हो गया। वे मन में ही क्रोध भरकर खड़ी हो गयीं। उनके कण्ठ, ओठ और तालु सूख गये थे। माता को यों थकी हुई देख कृपालु पुरुषोत्तम जगदीश्वर श्रीकृष्ण मुस्कराते हुए उनके सामने खड़े हो गये। नन्दरानी उनका हाथ पकड़कर अपने घर ले आयीं। उन्होंने मधुसूदन को वस्त्र से वृक्ष में बाँध दिया। श्रीकृष्ण को बाँधकर यशोदा अपने घर में चली गयीं तथा जगत्पति परमेश्वर श्रीहरि वृक्ष की जड़ के पास खड़े रहे। नारद! श्रीकृष्ण के स्पर्शमात्र से वह पर्वताकार वृक्ष सहसा भयानक शब्द करके वहाँ गिर पड़ा। उस वृक्ष से सुन्दर वेषधारी एक दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। वह रत्नमय अलंकारों से विभूषित, गौरवर्ण तथा किशोर-अवस्था का था। सुवर्णमय श्रृंगार से विभूषित जगदीश्वर श्रीकृष्ण को प्रणाम करके वह दिव्य पुरुष मुस्कराता हुआ दिव्य रथ पर आरूढ़ हुआ और अपने घर को चला गया। वृक्ष को गिरते देख व्रजेश्वरी यशोदा भय से त्रस्त हो उठीं। उन्होंने रोते हुए बालक श्यामसुन्दर को उठाकर छाती से लगा लिया। इतने में ही गोकुल के गोप और गोपियाँ उनके घर में आ पहुँचीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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