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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 21
नन्द द्वारा इन्द्रयाग की तैयारी, श्रीकृष्ण द्वारा इसके विषय में जिज्ञासा, नन्द जी का उत्तर और श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिवाद, श्रीकृष्ण की आज्ञा के अनुसार इन्द्र का यजन न करके गोपों द्वारा ब्राह्मण और गिरिराज का पूजन, उत्सव की समाप्ति पर इन्द्र का कोप, नन्द द्वारा इन्द्र की स्तुति, श्रीकृष्ण का नन्द को इन्द्र की स्तुति से रोककर सब व्रजवासियों को गौओं सहित, गोवर्धन की गुफा में स्थापित करके पर्वत को दण्ड की भाँति उठा लेना; इन्द्र, देवताओं तथा मेघों का स्तम्भन कर देना, पराजित इन्द्र द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति, श्रीकृष्ण का उन्हें विदा करके पर्वत को स्थापित कर देना तथा नन्द द्वारा श्रीकृष्ण का स्तवन भगवान नारायण कहते हैं– मुने! एक दिन आनन्दयुक्त नन्द ने व्रज में इन्द्रयज्ञ की तैयारी करके सब ओर ढिंढोरा पिटवाया। उस समय सबको यह संदेश दिया गया कि जो-जो इस नगर में गोप, गोपी, बालक, बालिका, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र निवास करते हैं; वे सब लोग भक्तिपूर्वक दही, दूध, घी, तक्र, माखन, गुड़ और मधु आदि सामग्री लेकर इन्द्र की पूजा करें। इस प्रकार घोषणा कराकर उन्होंने स्वयं ही प्रसन्नतापूर्वक सुविस्तृत रमणीय स्थान में यष्टि का आरोपण किया (ध्वाजा के लिये बाँस गड़वाया)। उसमें रेशमी वस्त्र और मनोरम मालाएँ लगवायीं। चन्दन, अगुरु, कस्तूरी और कुंकुम के द्रव से उस यष्टि को चर्चित किया गया। नन्द जी ने स्नान और नित्यकर्म करके भक्तिभाव से दो धुले हुए वस्त्र धारण किये तथा पैर धोकर वे सोने के पीढ़े पर बैठे। उस समय नाना प्रकार के पात्रों के साथ ब्राह्मण, पुरोहित, गोप, गोपी, बालिका तथा बालक उपस्थित हुए। इसी बीच में वहाँ नगरनिवासी भी बहुत सामान एकत्र करके अनेक प्रकार की भेंट-पूजा लिये आ पहुँचे। तदनन्तर ब्रह्मतेज से जाज्वल्यमान, वेद-वेदांगों के पारंगत विद्वान एवं शान्त-स्वभाव-गर्ग, जैमिनि, कृष्णद्वैपायन आदि बहुत-से मुनिगण शिष्यों सहित वहाँ पधारे। और भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, बन्दी, भिक्षुक आदि आये। गोपराज नन्द ने उठकर सभी का यथायोग्य प्रणामादि द्वारा स्वागत-सत्कार किया। तत्पश्चात यष्टि के समीप ही निपुण रसोइया ब्राह्मण पाक करने लगे। रत्नद्वीपों की तथा धूप की जगमगाहट और सुगन्धि चारों ओर फैल गयी। पुष्प मालाओं से स्थान सुसज्जित हो गये। भाँति-भाँति की मिठाई, पक्वान्न, मीठे फल, हजारों लाखों घड़े दूध, दही, घृत, मधु, मक्खन आदि इकट्ठे हो गये। सुरीले बाजे बजने लगे। नाना प्रकार के सोने-चाँदी के पात्र, श्रेष्ठ वस्त्र, आभूषण, स्वर्ण पीठ आदि लाये गये। सभी चीजें अगणित थीं। नृत्यगीत होने लगे। इसी बीच बलशाली बलराम तथा ग्वाल-बालों के साथ साक्षात श्रीहरि शीघ्रतापूर्वक वहाँ आये। उन्हें देखकर सब लोग हर्ष से खिल उठे और उठकर खड़े हो गये। श्रीकृष्ण क्रीड़ास्थान से लौटकर आ रहे थे। उनका शान्त सुन्दर विग्रह बड़ा मनोहर था। विनोद की साधनभूत मुरली, वेणु और श्रृंग नामक वाद्यों की ध्वनि उनके साथ सुनायी देती थी। रत्नों के सार-तत्त्व से निर्मित आभूषणों तथा कौस्तुभमणि से वे विभूषित थे। उनका श्याम मनोहर शरीर अगुरु एवं चन्दनपंक से चर्चित था। वे रत्नमय दर्पण में शरद्ऋतु के मध्याह्नकाल में प्रफुल्ल कमल के समान अपने मनोहर मुख को देख रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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