विषय सूची
ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 85
चारों वर्णों के भक्ष्याभक्ष्य का निरूपण तथा कर्मविपाक का वर्णन नन्द जी ने कहा- महाभाग! अब चारों वर्णों के भक्ष्याभक्ष्य का तथा समस्त प्राणियों के कर्मविपाक का वर्णन कीजिए। श्रीभगवान बोले- तात! मैं चारों वर्णों के वेदोक्त भक्ष्याभक्ष्य का यथोचित रूप से वर्णन करता हूँ, उसे सावधान होकर श्रवण करो। मनु का कथन है कि लोहे के बर्तन में जलपान, उसमें रखा हुआ गौ का दूध-दही-घी, पकाया हुआ अन्न भ्रष्ट्रादिक (भुना हुआ पदार्थ), मधु, गुड़, नारियल का जल, फल, मूल आदि सभी पदार्थ अभक्ष्य हो जाते हैं। जला हुआ अन्न तथा गरमाया हुआ बदरीफल या खट्टी काँजी को भी अभक्ष्य कहा गया है। काँसे के बर्तन से नारियल का जल और ताम्रपात्र में स्थित मधु तथा घृत के अतिरिक्त सभी गव्य पदार्थ (दूध-दही आदि) मदिरा-तुल्य हो जाते हैं। ताम्रपात्र में दूध पीना, जूठा रखना, घी का भोजन करना और नमक सहित दूध खाना तुरंत ही अभक्ष्य के समान पापकारक हो जाता है। मधु मिला हुआ घी तेल और गुड़ अभक्ष्य है तथा शास्त्र के मतानुसार गुड़ मिश्रित अदरक भी अभक्ष्य है। विद्वान पुरुष को चाहिए कि पीने से अवशिष्ट जल, माघ मास में मूली और शय्या पर बैठकर जप आदि का सदा परित्याग कर दे। उत्तम बुद्धि संपन्न पुरुष को दिन में दो बार तथा दोनों संध्याओं में और रात्रि के पिछले पहर में भोजन नहीं करना चाहिए। पीने का जल, खीर, चूर्ण, घी, नमक, स्वस्तिक के आकार की मिठाई, गुड़, दूध, मट्ठा तथा मधु- ये एक हाथ से दूसरे हाथ पर ग्रहण करने से तत्काल ही अभक्ष्य हो जाते हैं। श्रुति की सम्मति से चांदी के पात्र में रखा हुआ कपूर अभक्ष्य हो जाता है। यदि परोसने वाला व्यक्ति भोजन करने वाले को छू दे तो वह अन्न अभक्ष्य हो जाता है- यह सभी को सम्मत है। ब्राह्मणों को भैंस का दूध, दही, घी, स्वस्तिक और माखन नहीं खाना चाहिए। रविवार को अदरक सभी के लिए अभक्ष्य है। ब्राह्मणों के लिए बासी अन्न, जल और दूध निषिद्ध है। असंस्कृत नमक और तेल अभक्ष्य है; परंतु अग्नि द्वारा संस्कृत पवित्र व्यंजन सभी के खाने योग्य है। एक हाथ से धारण किया हुआ, गँदला, कृमियुक्त और अपवित्र जल अपेय होता है- यह सर्वसम्मत है। श्रीहरि को निवेदित किए बिना कोई भी पदार्थ ब्राह्मणों, यतियों, ब्रह्मचारियों, विशेष करके वैष्णवं को नहीं खाना चाहिए। तात! जिस-किसी वस्तु में अथवा मधु, दूध, दही, घी और गुड़ में यदि चींटियाँ पड़ गयी हों तो उसे कभी नहीं खाना चाहिए। ऐसा श्रुति में सुना गया है। पका हुआ शुद्ध फल, जिसे पक्षी ने काट दिया हो अथवा उसमें कीड़े पड़ गये हों तथा कौवे द्वारा उच्छिष्ट किया हुआ पदार्थ सभी के लिए अभक्ष्य होता है। घी अथवा तेल में पकाया हुआ मिष्टान्न तथा पीठक, यदि उसे शूद्र ने बनाकर तैयार किया हो तो वह शूद्रों के ही खाने योग्य होता है, ब्राह्मणों के लिए नहीं। जो अपवित्र हैं, उन सबके अन्न-जल का परित्याग कर देना चाहिए। अशौचान्त के दूसरे दिन सब शुद्ध हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। व्रजेश्वर! इस प्रकार मैंने अपनी जानकारी के अनुसार भक्ष्याभक्ष्य का वर्णन कर दिया।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतैरपि। अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।। (85।36)
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |