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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 9
श्रीकृष्ण की अनिवर्चनीय महिमा, धरा और द्रोण की तपस्या, अदिति और कद्रू का पारस्परिक शाप से देवकी तथा रोहिणी के रूप में भूतल पर जन्म, हलधर और श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव नारद जी ने पूछा– भगवन! गोकुल में यशोदा भवन के भीतर श्रीकृष्ण को रखकर जब वसुदेवजी ने अपने गृह को प्रस्थान किया, तब नन्दराय जी ने किस प्रकार पुत्रोत्सव मनाया? श्रीहरि ने वहाँ रहकर क्या किया? वे कितने वर्षों तक वहाँ रहे? प्रभो! आप उनकी बालक्रीड़ा का क्रमशः वर्णन कीजिये। पूर्वकाल में गोलोक में श्रीराधा के साथ भगवान ने जो प्रतिज्ञा की थी, वृन्दावन में उस प्रतिज्ञा का निर्वाह उन्होंने किस प्रकार किया? प्रभो! उस समय भूतल पर वृन्दावन का स्वरूप कैसा था? उनका रासमण्डल कैसा था? यह सब बताइये। रासक्रीड़ा और जलक्रीड़ा का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। नन्द ने कौन-सी तपस्या की थी? यशोदा और रोहिणी ने कौन-सा तप किया था? श्रीहरि से पहले हलधर का जन्म कहाँ हुआ था? श्रीहरि का अपूर्व आख्यान अमृतखण्ड के समान माना गया है। विशेषतः कवि के मुख में श्रीहरि चरित्रमय काव्य पद-पद पर नूतन प्रतीत होता है। आप अपने रासमण्डल की क्रीड़ा का स्वयं ही वर्णन कीजिये। काव्य में परोक्ष हुई वस्तु का वर्णन होता है। परंतु जहाँ प्रत्यक्ष देखी हुई वस्तु का वर्णन हो उसे उत्तम, उसे उत्तम कहा गया है। साक्षात भगवान श्रीकृष्ण योगीन्द्रों के गुरु के भी गुरु हैं। जो जिसका अंश होता है, वह उस अंशी के सुख से सुखी होता है। प्रभो! आपने ही यह वर्णन किया है कि आप दोनों नर और नारायण श्रीहरि के चरणों में विलीन हो गये थे। उनमें भी आप ही साक्षात गोलोक के अंश हैं; अतः उनके समान ही महान हैं (इसीलिये श्रीकृष्ण लीलाएँ आपके प्रत्यक्ष अनुभव में आयी हुई हैं; अतः आप उनका वर्णन कीजिये) भगवान् नारायण बोले– नारद! ब्रह्मा, शिव, शेष, गणेश, कूर्म, धर्म, मैं, नर तथा कार्तिकेय– ये नौ श्रीकृष्ण के अंश हैं। अहो! उन गोलोकनाथ की महिमा का कौन वर्णन कर सकता है? जिन्हें स्वयं हम भी नहीं जानते और न वेद ही जानते हैं। फिर दूसरे विद्वान क्या जान सकते हैं? शूकर, वामन, कल्कि, बुद्ध, कपिल और मत्स्य– ये भी श्रीकृष्ण के अंश हैं तथा अन्य कितने ही अवतार हैं, जो श्रीकृष्ण की कलामात्र हैं। नृसिंह, राम तथा श्वेतद्वीप के स्वामी विराट विष्णु पूर्ण अंश से सम्पन्न हैं। श्रीकृष्ण परिपूर्णतम परमात्मा हैं। वे स्वयं ही वैकुण्ठ और गोकुल में निवास करते हैं। वैकुण्ठ में वे कमलाकान्त कहे गये हैं और रूप-भेद से चतुर्भुज हैं। गोलोक और गोकुल में ये द्विभुज श्रीकृष्ण स्वयं ही राधाकान्त कहलाते हैं। योगी पुरुष इन्हीं के तेज को सदा अपने चित्त में धारण करते हैं। भक्त पुरुष इन्हीं भगवान के तेजोमय चरणारविन्द का चिन्तन करते हैं। भला, तेजस्वी के बिना तेज कहाँ रह सकता है? ब्रह्मन! सुनो। मैं तुमसे यशोदा, नन्द और रोहिणी के तप का वर्णन करता हूँ, जिसके कारण उन्होंने श्रीहरि का मुँह देखा था। वसुओं में श्रेष्ठ तपोधन द्रोण नन्द नाम से इस धरातल पर अवतीर्ण हुए थे। उनकी पत्नी जो तपस्विनी धरा थीं, वे ही सती-साध्वी यशोदा हुई थीं। सर्पों को जन्म देने वाली नागमाता कद्रू ही रोहिणी बनकर भूतल पर प्रकट हुई थी। इनके जन्म और चरित्र का वर्णन करता हूँ, सुनो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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