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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 63-64
कंस के द्वारा रात में देखे हुए दुःस्वप्नों का वर्णन और उससे अनिष्ट की आशंका, पुरोहित सत्यक का अरिष्ट-शान्ति के लिए धनुर्यज्ञ का अनुष्ठान बताना, कंस का नन्दनन्दन को शत्रु बताना और उन्हें व्रज से बुलाने के लिए वसुदेव जी को प्रेरित करना, वसुदेव जी के अस्वीकार करने पर अक्रूर को वहाँ जाने की आज्ञा देना, ऋषिगण तथा राजाओं का आगमन भगवान नारायण कहते हैं- नारद! इधर मथुरा में राजा कंस बुरे सपने देख विशेष चिन्ता में पड़कर अत्यंत भयभीत हो उद्विग्न हो उठा। उसकी खाने-पीने की रुचि जाती रही। उसके मन में किसी प्रकार की उत्सुकता नहीं रह गयी। वह अत्यंत दुःखी हो पुत्र, मित्र, बन्धु-बान्धव तथा पुरोहित को सभा में बुलाकर उनसे इस प्रकार बोला। कंस ने कहा- मैंने आधी रात के समय जो बुरा सपना देखा है, वह बड़ा भयानक है; इस सभा में बैठे हुए समस्त विद्वान बन्धु-बान्धव और पुरोहित उसे सुनें। मेरे नगर में एक अत्यंत वृद्धा और काले शरीर वाली स्त्री नाच रही है। वह लाल फूलों की माला पहने, लाल चंदन लगाये तथा लाल वस्त्र धारण किए स्वभावतः अट्टहास कर रही है। उसके एक हाथ में तीखी तलवार है और दूसरे में भयानकर खप्पर। वह जीभ लपलपाती हुई बड़ी भयंकर दिखायी देती है। इसी तरह एक दूसरी काली स्त्री है, जो काले कपड़े पहने हुई है। देखने में महाशूद्री विधवा जान पड़ती है। उसके केश खुले हैं और नाक कटी हुई है। वह मेरा आलिंगन करना चाहती है। उसने मलिन वस्त्रखण्ड, रूखे केश तथा चूर्ण तिलक धारण कर रखे हैं। पुरोहित सत्यक जी! मैंने देखा है कि मेरे कपाल और छाती पर ताड़ के पके हुए काले रंग के छिन्न-भिन्न फल बड़ी भारी आवाज के साथ गिर रहे हैं। एक मैला-कुचैला विकृत आकार तथा रूखे केश वाला म्लेच्छ मुझे आभूषण बनाने के निमित्त टूटी-फूटी कौड़ियाँ दे रहा है। एक पति पुत्रवाली दिव्य सती स्त्री ने अत्यंत रोष से भरकर बारंबार अभिशाप दे भरे हुए घड़े को फोड़ डाला है। यह भी देखा कि महान रोष से भरा हुआ एक ब्राह्मण अत्यंत शाप दे मुझे अपनी पहनी हुई माला, जो कुम्हलाई नही थी और रक्त चंदन से चर्चित थी, दे रहा है। यह भी देखने में आया कि मेरे नगर में एक-एक क्षण अंगार, भस्म तथा रक्त की वर्षा हो रही है। मुझे दिखायी दिया कि वानर, कौए, कुत्ते, भालू, सूअर और गदहे विकट आकार में भयानक शब्द कर रहे हैं। सूखे काष्ठों की राशि जमा है, जिसकी कालिमा मिटी नहीं है। अरुणोदय की बेला में मुझे बंदर और कटे हुए नख दृष्टिगोचर हुए। मेरे महल से एक सती स्त्री निकली, जो पीताम्बर धारण किये, श्वेत चंदन का अंगराग लगाये, मालती की माला धारण किए रत्नमय आभूषणों से विभूषित थी। उसके हाथ में क्रीड़ा-कमल शोभा पा रहा था और भालदेश सिन्दूर बिन्दु से सुशोभित था। वह रुष्ट हो मुझे शाप देकर चली गयी। मुझे अपने नगर में कुछ ऐसे पुरुष प्रवेश करते दिखायी दिये, जिनके हाथों में फंदा था। उनके केश खुले हुए थे। वे अत्यंत रूखे और भयंकर जान पड़ते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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