ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 13
विष्णु आदि देवताओं द्वारा गणेश की अग्रपूजा, पार्वतीकृत विशेषोपचार सहित गणेश पूजन, विष्णुकृत गणेशस्तवन और ‘संसारमोहन’ नामक कवच का वर्णन श्रीनारायण जी कहते हैं– नारद! तदनन्तर विष्णु ने शुभ समय आने पर देवों तथा मुनियों के साथ सर्वश्रेष्ठ उपहारों से उस बालक का पूजन किया और उससे यों कहा–‘सुरश्रेष्ठ! मैंने सबसे पहले तुम्हारी पूजा की है; अतः वत्स! तुम सर्वपूज्य तथा योगीन्द्र होओ।’ यों कहकर श्रीहरि ने उसके गले में वनमाला डाल दी और उसे मुक्तिदायक ब्रह्मज्ञान तथा सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्रदान करके अपने समान बना दिया। फिर षोडशोपचार की सुन्दर वस्तुएँ दीं और मुनियों तथा देवों के साथ उसका इस प्रकार नामकरण किया– विघ्नेश, गणेश, हेरम्ब, गजानन, लम्बोदर, एकदन्त, शूर्पकर्ण और विनायक– उसके ये आठ नाम रखे गये। पुनः सनातन श्रीहरि ने उन मुनियों को बुलवाकर उसे आशीर्वाद दिलाया। तदनन्तर सभी देव-देवियों ने तथा मुनियों आदि ने अनेक प्रकार के उपहार गणेश को दिये और फिर क्रमशः उन्होंने भक्तिपूर्वक उसकी पूजा की। नारद! तदनन्तर जगज्जननी पार्वती ने, जिनका मुखकमल हर्ष के कारण विकसित हो रहा था, अपने पुत्र को रत्ननिर्मित सिंहासन पर बैठाया। फिर उन्होंने आनन्दपूर्वक समस्त तीर्थों के जल से भरे हुए सौ कलशों से मुनियों द्वारा वेद-मन्त्रोच्चारणपूर्वक उसे स्नान कराया और अग्नि में तपाकर शुद्ध किये हुए दो वस्त्र दिये। फिर पाद्य के लिये गोदावरी का जल, अर्घ्य के निमित्त गंगाजल और आचमन के हेतु दूर्वा, अक्षत, पुष्प और चन्दन से युक्त पुष्कर का जल लाकर दिया। रत्नपात्र में रखे हुए शक्करयुक्त द्रव का मधुपर्क प्रदान किया। पुनः स्वर्गलोक के वैद्य अश्विनीकुमार द्वारा निर्मित स्नानोपयोगी विष्णुतैल, बहुमूल्य रत्नों के बने हुए सुन्दर आभूषण, पारिजात के पुष्पों की सौ मालाएँ, मालती, चम्पक आदि अनेक प्रकार के पुष्प, तुलसी के अतिरिक्त पूजोपयोगी तरह-तरह के पत्र, चन्दन, अगुरु, कस्तूरी, कुमकुम, ढेर-के-ढेर रत्नप्रदीप और धूप सादर समर्पित किये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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