ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 41
परशुराम का कैलास-गमन, वहाँ शिव-भवन में पार्षदों सहित गणेश को प्रणाम करके आगे बढ़ने को उद्यत होना, गणेश द्वारा रोके जाने पर उनके साथ वार्तालाप श्रीनारायण कहते हैं– नारद! श्रीहरि का कवच धारण करके जब परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दिया, तब वे अपने गुरुदेव शिव को नमस्कार करने और गुरुपत्नी अम्बा शिवा को तथा दोनों गुरुपुत्र कार्तिकेय और गणेश्वर को, जो गुणों में नारायण के समान थे, देखने के लिये कैलास को चले। वे भृगुवंशी महात्मा मन के समान वेगशाली थे; अतः उसी क्षण कैलास पर जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने अत्यन्त रमणीय परम मनोहर नगर देखा। वह नगर ऐसी बड़ी-बड़ी सड़कों से सुशोभित था, जो अत्यन्त भली लगती थीं। उनकी भूमि सोने की भूमि की-सी थी, जिन पर शुद्ध स्फटिक के सदृश मणियाँ जड़ी हुई थीं। उस नगर में चारों ओर सिंदूर की-सी रंगवाली मणियों की वेदिकाएँ बनी थीं। वह राशि-की-राशि मुक्ताओं से संयुक्त और मणियों के मण्डपों से परिपूर्ण था। उसमें यक्षों के एक अरब दिव्य भवन थे, जो रत् और कांचनों से परिपूर्ण, यक्षेन्द्रगणों से परिवेष्टित और मणिनिर्मित किवाड़, खम्भे और सीढ़ियों से शोभायमान थे। वह नगर दिव्य सुवर्ण-कलशों, चाँदी के बने हुए श्वेत चँवरों, रत्नों के आभूषणों से विभूषित था। वह उद्दीप्त होती हुई सुन्दरियों, हाथों में चित्रलिखित पुत्तलिकाएँ लिये हुए निरन्तर स्वच्छन्दतापूर्वक हँसते और खेलते हुए सुन्दर-सुन्दर बालकों एवं बालिकाओं तथा स्वर्गगंगा के तट पर उगे हुए पारिजात के वृक्षसमूहों से खचाखच भरा था। सुगन्धित एवं खिले हुए पुष्पसमूहों से सम्पन्न, कल्पवृक्षों का आश्रय लेने वाले कामधेनु से पुरस्कृत, सिद्धविद्या में अत्यन्त निपुण पुण्यवान सिद्धों द्वारा सेवित था। जो तीन लाख योजन ऊँचे और सौ योजन के विस्तार वाले थे। जिनमें सैकड़ों मोटी-मोटी डालियाँ थीं, जो असंख्य शाखासमूहों और असंख्य फलों से संयुक्त थे। परम मनोहर शब्द करने वाले विभिन्न प्रकार के पक्षिसमूहों से व्याप्त थे। शीतल-सुगन्ध वायु जिन्हें कम्पायमान कर रही थी, ऐसे अविनाशी वटवृक्षों से, सहस्रों पुष्पोद्यानों से, सैकड़ों सरोवरों से तथा मणियों एवं रत्नों से बने हुए सिद्धेन्द्रों के लाखों भवनों से वह नगर सुशोभित था। उसे देखकर परशुराम का मन अत्यन्त प्रसन्नता से खिल उठा। फिर सामने ही उन्हें शंकर जी का शोभाशाली रमणीय आश्रम दीख पड़ा। विश्वकर्मा ने बहुमूल्य सुनहली मणियों द्वारा उसकी रचना की थी। उसमें हीरे जड़े हुए थे। वह पंद्रह योजन ऊँचा और चार योजन विस्तृत था। उसके चारों ओर अत्यन्त सुन्दर सुडौल चौकोर परकोटा बना हुआ था। दरवाजों पर नाना प्रकार की चित्रकारियों से युक्त रत्नों के किवाड़ लगे थे। वह उत्तम मणियों की वेदियों से युक्त तथा मणियों के खंभों से सुशोभित था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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