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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 122
गणेश के अग्रपूज्यत्व वर्णन के प्रसंग में राधा द्वारा गणेश की अग्रपूजा का कथन नारद जी ने पूछा- मुने! पुराणों में जो गणेश-पूजन का दुर्लभ आख्यान वर्णित है, उसे मैंने सामान्यतया ब्रह्मा के मुख से संक्षेप में सुना है। अब आपसे समस्त पूजनीयों में प्रधान गणपति की महिमा विस्तारपूर्वक सुनने की मेरी अभिलाषा है; क्योंकि आप योगीन्द्रों के गुरु के भी गुरु हैं। पूर्वकाल में स्वर्गवासियों ने सिद्धाश्रम में राधा माधव की महापूजा की थी; उसी राधा ने सौ वर्ष के बीतने पर जब श्रीदामा का शाप निवृत्त हुआ; तब ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि सुरेंद्रों, नागराज शेष और अन्यान्य बड़े-बड़े नागों, भूतल पर बहुत से बलशाली नरेशों और असुरों, अन्यान्य महाबली गन्धर्वों तथा राक्षसों के रहते हुए सर्वप्रथम गणेश की पूजा कैसे की? महाभाग! यह वृत्तान्त मुझसे विस्तारपूर्वक वर्णन करने की कृपा करें। श्री नारायण बोले- नारद! तीनों लोकों में पुण्यवती होने के कारण पृथ्वी धन्य एवं मान्य है। उस पृथ्वी पर भारतवर्ष कर्मों का शुभ फल देने वाला है। उस पुण्यक्षेत्र भारत में सिद्धाश्रम नामक एक महान पुण्यमय शुभ क्षेत्र हैं; जो धन्य, यशस्य, पूज्य और मोक्ष प्रदाता है। भगवान सनत्कुमार वहीं सिद्ध हुए थे। स्वयं ब्रह्मा ने भी वहीं तपस्या करके सिद्धि प्राप्त की थी। योगीन्द्र, मुनीन्द्र, कपिल आदि सिद्धेंद्र और शतक्रतु महेंद्र वहीं तप करके सिद्धि के भागी हुए हैं। इसी कारण उसे सिद्धाश्रम कहते हैं। वह सभी के लिए दुर्लभ है। मुने! वहाँ गणेश नित्य निवास करते हैं। वहाँ गणेश की अमूल्य रत्नों की बनी हुई एक सुंदर प्रतिमा है; जिसकी वैशाखी पूर्णिमा के दिन सभी देवता, नाग, मनुष्य, दैत्य, गन्धर्व, राक्षस, सिद्धेंद्र, मुनीन्द्र, योगीन्द्र और सनकादि महर्षि पूजा करते हैं। उस अवसर पर वहाँ पार्वती के साथ कल्याणकारी शम्भु, गणोंसहित कार्तिकेय और स्वयं प्रजापति ब्रह्मा पधारे। प्रधान-प्रधान नागों के साथ शेषनाग भी तुरंत ही वहाँ आ पहुँचे। फिर सभी देवता, मनु और मुनिगण भी वहाँ आये। सभी नरेश प्रसन्नमन से गणेश की पूजा करने के लिए वहाँ उपस्थित हुए। द्वारकावासियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण का भी वहाँ शुभागमन हुआ तथा गोकुलवासियों के साथ नन्द भी पधारे। तदनन्तर सुरसिका, रासेश्वरी और श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिदेवता सुंदरी राधा भी सौ वर्ष व्यतीत हो जाने पर गोलोकवासिनी गोपी सखियों के साथ पधारीं। वहाँ सुंदर दाँतों वाली राधा ने भलीभाँति स्नान करके शुद्ध हो धुली हुई साड़ी और कंचुकी धारण की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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