सृष्टि का क्रम– ब्रह्मा जी के द्वारा मेदिनी, पर्वत, समुद्र, द्वीप, मर्यादा पर्वत, पाताल, स्वर्ग आदि का निर्माण; कृत्रिम जगत की अनित्यता तथा वैकुण्ठ, शिवलोक तथा गोलोक की नित्यता का प्रतिपादन
सौति कहते हैं– शौनक जी! तब भगवान की आज्ञा के अनुसार तपस्या करके अभीष्ट सिद्धि पाकर ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम मधु और कैटभ के मेदे से मेदिनी की सृष्टि की। उन्होंने आठ प्रधान पर्वतों की रचना की। वे सब बड़े मनोहर थे। उनके बनाये हुए छोटे-छोटे पर्वत तो असंख्य हैं, उनके नाम क्या बताऊँ? मुख्य-मुख्य पर्वतों की नामावली सुनिये– सुमेरु, कैलास, मलय, हिमालय, उदयाचल, अस्ताचल, सुवेल और गन्धमादन – ये आठ प्रधान पर्वत हैं। फिर ब्रह्मा जी ने सात समुद्रों, अनेकानेक नदों और कितनी ही नदियों की सृष्टि की। वृक्षों, गाँवों और नगरों का निर्माण किया। समुद्रों के नाम सुनिये– लवण, इक्षुरस, सुरा, घृत, दही, दूध और सुस्वादु जल के वे समुद्र हैं। उनमें से पहले की लंबाई-चौड़ाई एक लाख योजन की है। बाद वाले उत्तरोत्तर दुगुने होते गये हैं। इन समुद्रों से घिरे हुए सात द्वीप हैं। उनके भूमण्डल कमल पत्र की आकृति वाले हैं। उनमें उपद्वीप और मर्यादा पर्वत भी सात-सात ही हैं।
ब्रह्मन! अब आप उन द्वीपों के नाम सुनिये, जिनकी पहले ब्रह्मा जी ने रचना की थी। वे हैं–जम्बूद्वीप, शाकद्वीप, कुशद्वीप, प्लक्षद्वीप, क्रौंचद्वीप, न्यग्रोध (अथवा शाल्मलि) द्वीप तथा पुष्करद्वीप। भगवान ब्रह्मा ने मेरु पर्वत के आठ शिखरों पर आठ लोकपालों के विहार के लिये आठ मनोहर पुरियों का निर्माण किया। उस पर्वत के मूलभाग–पाताल लोक में उन्होंने भगवान अनन्त (शेषनाग) की नगरी बनायी। तदनन्तर लोकनाथ ब्रह्मा ने उस पर्वत के ऊपर-ऊपर सात स्वर्गों की सृष्टि की।शौनक जी! उन सबके नाम सुनिये– भूर्लोक, भुवर्लोक, परम मनोहर स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक तथा सत्यलोक।
मेरु के सबसे ऊपरी शिखर पर जरा-मृत्यु आदि से रहित ब्रह्मलोक है। उससे भी ऊपर ध्रुवलोक है, जो सब ओर से अत्यन्त मनोहर है। जगदीश्वर ब्रह्मा जी ने उस पर्वत के निम्न भाग में सात पातालों का निर्माण किया। मुने! वे स्वर्ग की अपेक्षा भी अधिक भोग-साधनों से सम्पन्न हैं और क्रमशः एक से दूसरे उत्तरोत्तर नीचे भाग में स्थित हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं– अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, पाताल तथा रसातल। सबसे नीचे रसातल ही है। सात द्वीप, सात स्वर्ग तथा सात पाताल– इन लोकों सहित जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है, वह ब्रह्मा जी के ही अधिकार में है।
शौनक! ऐसे-ऐसे असंख्य ब्रह्माण्ड हैं और महाविष्णु के रोमांच-विवरों में उनकी स्थिति है। श्रीकृष्ण की माया से प्रत्येक ब्रह्माण्ड में दिक्पाल, ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर हैं, देवता, मनुष्य आदि सभी प्राणी स्थित हैं। इन ब्रह्माण्डों की गणना करने में न तो लोकनाथ ब्रह्मा, न शंकर, न धर्म और न विष्णु ही समर्थ हैं; फिर और देवता किस गिनती में हैं? विप्रवर! कृत्रिम विश्व तथा उसके भीतर रहने वाली जो वस्तुएँ हैं, वे सब अनित्य तथा स्वप्न के समान नश्वर हैं। वैकुण्ठ, शिवलोक तथा इन दोनों से परे जो गोलोक है, ये सब नित्य-धाम हैं। इन सबकी स्थिति कृत्रिम विश्व से बाहर है। ठीक उसी तरह, जैसे आत्मा, आकाश और दिशाएँ कृत्रिम जगत से बाहर तथा नित्य हैं।