नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
14. तुंगी तायी-दुग्ध–पान
यह नन्हा नीलमणि भगवती के ही श्रीमुख को कब से देख रहा था। वे भी तो इसके मुख से दृष्टि नहीं हटा पा रही थीं। लेकिन अब भगवती ने शंख उठाया तो इसे सम्भवत: उज्ज्वल शंख बहुत आकर्षक लगा होगा। दोनों कर उठाकर शंख को पकड़ने का प्रयत्न करने लगा और किलकने लगा। मुझे जन्म-जन्म यह शोभा नहीं भूलेगी। नन्हें नीलमणि के लाल-लाल छोटे ओष्ठ, किलकता दन्तहीन खुला छोटा-सा मुख, शंख पकड़ने को उत्सुक इसके दोनों उठे लाल-लाल हाथ। भगवती ने इसके अधरों से शंख सटाया और एक बिन्दु गिरा दिया दूध इसके मुख में। हाथ पैर हिला-हिलाकर यह दूध का बिन्दु चाटने लगा। कितनी अद्भुत शोभा है। महर्षि का स्वस्ति-पाठ, मुनियों का सामगान, गोपों का शंखनाद, पुरुषों के कण्ठ की सोत्साह जयध्वनि, गोपियों का गान-सब में मानों शतगुणित शक्ति आ गयी। मधुमंगल तालियाँ बजाकर नाचने लगा है। यह लो-इसने अन्तत: शंख को हिला ही दिया है। इसके मुख में, तनिक नासिका पर चिबुक पर पड़े उज्ज्वल दूध की यह छटा। यह तो मधुर दूध को चाटने में मग्न हो गया है और आनन्द से किलक रहा है। भगवती पूर्णमासी दक्षिण कर में शंख उठाये एकटक इसकी ओर देख रही हैं। उनका शरीर अब कम्पित होने लगा है। मैंने आगे आकर नम्रतापूर्वक उनके हाथों से वह शंख ले लिया। मुझे लगता है कि वह शंख अब भी मेरे हाथों में है और भगवती पूर्णमासी के अंक में लेटा नीलसुन्दर अपने अधर पर, चिबुक पर दूध की उज्ज्वल छटा लिए, दूध चाटते मेरी ओर देखकर अब हाथ उठा रहा है- किलक रहा है। |
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