नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
81. अक्रूर-अद्भुत दर्शन
'आप दोनों रथ पर ही कुछ देर बैठे रहें; क्योंकि यहाँ पुलिन के समीप कोई शीतल छाया का सघन वृक्ष नहीं है।' मैंने प्रार्थना की- 'मैं स्नान-संध्या करके शीघ्र आ रहा हूँ।' 'आप निश्चिन्त अपना आह्निक सम्पन्न करें।' श्रीकृष्णचन्द्र ने अनुमति दे दी- 'आर्य के साथ मैं यहीं हूँ।' मैं दोनों भाइयों को रथ पर बैठाकर कालिन्दी-किनारे आया। वस्त्र पुलिन पर रखकर जल में प्रवेश किया मैंने। जैसे ही डुबकी लगायी, देखता हूँ कि दोनों भाई जल में सम्मुख हैं। लगा कि चपलकुमार हैं। इनके मन में भी स्नान करने की आ गयी होगी। मेरे पीछे ही चले आये हैं। लेकिन तब रथ को लेकर अश्व कहीं चले न जायँ- इस आशंका से मैंने मस्तक ऊपर उठाकर पीछे मुख घुमाकर देखा। रथ तो वहीं खड़ा है, जहाँ मैं खड़ा कर आया हूँ। दोनों भाई भी रथ पर बैठे हैं और परस्पर कुछ बातें कर रहे हैं। तब क्या मैंने जल में जो इन्हें देखा, वह मेरा भ्रम था? मैंने जल में फिर डुबकी लगायी और नेत्र खोले- वहाँ जो कुछ देखा- जन्म-जन्म की साधना से वह सम्भव नहीं। मेरे किन्हीं भी पुण्यों में इतनी सामर्थ्य नहीं। मेरे इन अनन्त कृपामय आराध्य ने मेरे अन्तर की आकुलता को लक्षित करके मुझे अपने दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार कराया। मैंने देखा कि सिद्ध, चारण, गन्धर्व, किन्नर, नाग, सुर, असुर सबके प्रधान नायकों की अञ्जलि बँधी है। सब सिर झुकाये स्तुति कर रहे हैं। सबके सम्मुख हैं नीलाम्बर, हिमश्वेत सहस्रफणा भगवान शेष। उनके मणिमण्डित मस्तकों का प्रकाश असह्य है। उन अनन्त का अपार विस्तार देह- मानो अपर मन्दराचल हो। उनके अंक में- उनके भोगकुण्डल पर, उनके फणों के छत्र के नीचे नवीन-नीरदश्याम, विद्युत पीतवसन, चतुर्भुज, प्रशान्त, पद्मपलाशलोचन, प्रसन्नवदन, परम पुरुष आसीन हैं। सस्मित कृपापूरित दृगों से देख रहे हैं। उनकी कुटिल भृकुटी, मनोहर कर्ण, उन्नत नासिका, निर्मल कपोल, पतले अरुण अधर, मोटी विशाल भुजाएँ, श्रीवत्सांकित प्रशस्त वक्ष-स्थल, कौस्तुभ-भूषित कम्बुकण्ठ, गम्भीर नाभि, त्रिवली-विभूषित-पल्लव समान उदर, क्षीणकटि, बृहन्नितम्ब, करिकरभउरुद्वय, मणिसन्निभ घुटने, मनोहर पिण्डलियाँ, ऊँची भरी लाल-लाल दोनों गुल्फ[1] नवीन किसलय समान पादांगुलि और उनके अरुण ज्योतिर्मय नख- मेरा चित्त इन पादपंकजों में भ्रमर के समान भूल गया। कुछ क्षण निमग्न रहने के उपरान्त मैंने पुनः श्रीहरि की सर्वांग शोभा के दर्शन किये। ज्योतिर्मय महामणियों से अलंकृत किरीट, मुकुट, भुजाओं में रत्नांगद, यज्ञोपवीत, कटिसूत्र, वक्षस्थल पर मणिमाला, करों में कंकण, चरणों में नूपुर, कर्णों में कुण्डल- सब चिन्मय, सब अमल ज्योत्स्ना के मानो धनीभाव हों। कर में शशि-सन्निभ शंख, सहस्रार चक्र, महागदा और प्रफुल्ल पद्म। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एड़ी
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