नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
8. भगवान भास्कर-श्रीराधा-जन्म
अब यह उसका आविर्भाव-अवसर आ रहा है।[1] कार्तिक कृष्ण अष्टमी, मध्याह्नकाल और मुझे मेघों के पीछे हो जाना चाहिये; क्योंकि कन्या का सूर्य बहुत विष-रश्मि होता है। मेरी किरणें किसी के भी शरीर का स्पर्श करें, यह उचित नहीं है। यह उस दिव्या का आविर्भावकाल है। मैं उसके लग्न मीन से सप्तम कन्या में हूँ बुध के साथ। देवगुरु पञ्चम में उच्च के स्वगृही चन्द्र के साथ हैं। राहु सिंह में षष्ठ है। अष्टम में उच्च का शनि स्वगृही शुक्र के साथ तुला में है। मंगल उच्च का एकादश में मकर पर है और केतु कुम्भ में द्वादश में बैठा है। आह्लाद की अधीश्वरी का यह जन्मकाल, मैंने आज ही देखा है कि विकच कुमुदिनियाँ कैसी होती हैं। वे आज मेरा संकोच त्यागकर सरोजों के साथ सरों में हँस रही हैं और हँस तो रही है निखिल प्रकृति। यह प्रकृति भी तो बालिका ही है। मुझे तो आज सर्वत्र नन्ही, सुन्दर, सुकुमार बालिकाएँ दीख रही हैं। सुरांगनाएँ, गन्धर्व कुमारियाँ, तारिकाएँ और धरा पर कण-कण में नाचती, किलकती ये मेरी किरण-कुमारियाँ! ये लतिकायें, मराल बालायें, गायें और कहाँ तक गिनाऊँ पिपीलिकायें, भ्रमरियाँ सब, सर्वत्र आज मुझे तो शिशु बालिकायें ही बालिकायें दीखती हैं। आनन्दमग्न, किलकती, नाचती, नन्हें करों की तालियाँ बजाती, ये तृण-तरुओं के पत्र-पत्र को अलंकृत करती कन्यायें- सृष्टि कन्याओं से से भर गयी है। मेरी कन्यायें-मेरी आह्लादिनी सुता की ये स्नेहमूर्ति सहेलियाँ! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सभी पुराने पञ्चांगों में कार्तिक कृष्ण अष्टमी को श्रीराधाष्टमी लिखा होता है। इसे अहोई अष्टमी कहते हैं। अहोई अर्थात न होने वाली-अजन्मा की जन्मतिथि। भाद्रशुक्ल अष्टमी श्रीराधाअष्टमी कल्पभेद से जन्म दिन है। अहोई अष्टमी का व्रज में अब भी बहुत मान है। श्रीराधाकुण्ड का स्नान इस दिन प्रचलित है।
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