नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
70. बुध-विप्र-पत्नियाँ
चतुर्वेदियों की पत्नियाँ भली प्रकार अलंकृत थीं। ब्राह्मण मध्याह्न -स्नान, सन्ध्या करके भोजन करने आवेंगे। इतने सुन्दर सलोने बालकों को एक साथ देखकर सब चकित रह गयीं। सब बालकों के समीप आ गयीं थीं। 'राम-श्याम समीप आ गये हैं? वे भूखे हैं?' अनेक एक साथ बोलीं- 'सखि! मैं तो चली। उन्हें भोजन दे आऊँगी। उनको भर नेत्र देख आऊँगी।' हम भी चलेंगी।' सबने कहा और बड़े-बड़े थाल शीघ्रतापूर्वक पक्वान्नों से भरने लगीं। बालक प्रसन्न हो गये। 'बहुत सुनती रही हैं कि वे त्रिभुवनसुन्दर हैं।' ब्राह्मणियों में परस्पर चर्चा यहाँ आकर चलती ही रही है- 'उन्होंने पूतना, तृणावर्त, प्रलम्ब आदि अनेक कंस के असुर खेल-खेल में मार दिये। कितने वीर होंगे वे।' बहुत शीघ्र थाल भरकर वे चल पड़ीं। बालकों ने उन्हें सावधान किया कि 'ब्राह्मण उन्हें पुकार रहे हैं! दौड़े आ रहे हैं।' 'तुम सब दौड़े चलो! पुकारने दो उनको!' ब्राह्मणों की पत्नियाँ बालकों के पीछे दोड़ने लगीं। 'तुम सब कहाँ जाती हो? रुको! मत जाओ!' ब्राह्मण पुकारते दौड़े। एक-एक का नाम लेकर पुकारते दौड़ पड़े। एक तरुण ने बढ़कर सबसे पीछे जाती अपनी पत्नी की चोटी पकड़ ली। पकड़ते ही उसके हाथ से थाल गिरा झन्न से। पक्वान्न बिखर गये। 'हाय!' एक आर्त चीत्कार मुख से निकली और वह भहराकर गिर पड़ी। श्वेत पड़ गया उसका मुख- अब और पकड़? जिसका तूने पाणिग्रहण किया था, वह प्राणहीन शरीर तेरे सामने पृथ्वी पर पड़ा है। अब अपना सिर पीट! यहीं तक तो तेरा स्वत्व था। ले जा इस स्वत्व को और जो जी में आये कर! वह तरुण ब्राह्मण मृत पत्नी के मुख पर दृष्टि जाते ही सिर पीटकर बैठ गया। दूसरे जो पीछे दौड़े आते थे, भय के कारण ठिठक गये। 'यह क्या हुआ?' अब अपनी ब्राह्मणमियों की चिंता त्यागकर पहिले सबको इस शव का अन्त्येष्टि-संस्कार करना है। यज्ञ तो गया; क्योंकि अब मृत -सूतक हो गया। श्रीकृष्ण के विरुद्ध जाकर युद्ध करना कैसा होता है, यह अब कुछ समझ में इनकी आने लगा है। |
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