नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
58. विशाल-सखा-समूह
महाराज! आप हमारे दाऊ दादा को श्याम के दाहिने देख लेना। बहुत विशाल बाहु हैं उसके और चौड़ा वक्षस्थल कस्तूरी से बने चित्र से चित्रित रहता है। गुंजामाल, नीलवस्त्र, उत्पलोवतंस पर गूँजते अलिगण- दाऊ दादा तो केवल दाहिने कर्ण में कुण्डल पहिनता है। कन्हाई अतसी-कुसुम-श्याम है। पीतपटुका, पीत कछनी, वनमाली, मयूरमुकुटी रहता है। उष्णीष कब किस रंग का कैसे बाँधेगा, पता नहीं रहता; किंतु तिरछी अवश्य बाँधेगा। गोरोचन की खौर के मध्य कस्तूरि का-बिन्दु लगाता है भाल पर। कभी मुरली कटि में लगी रहती है, कभी कर में। इसके वाम कन्धे पर कभी-कभी काली कमली होती है। कर में क्रीड़ा से कमल भी ले लेता है। वाम स्कन्ध पर पट्टसूत्र से बना विद्युत के समान चमकती कुण्डलीकृत रज्जु रखता है। स्वर्णाग्र-मण्डित तीन हाथ ऊँची अरुण वर्ण की वेत्र-यष्टि होती है वाम कर में और वाम कक्ष में ही श्रंग रहता है। 'बस वत्स!' मुनि महाराज उठ खड़े हुए। मेरे मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। मैं तो भूल ही गया था कि इन्होंने केवल नाम गिनाने को कहा था और दाऊ तथा श्याम को पहिचानते हैं। |
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