नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
34. उर्वशी-ऊखल-बन्धन
मुझे अपने को छिपाने के लिए कुछ नहीं करना पड़ा। यहाँ तो भगवती शारदा, कमला तक सामान्य दासियों से मिली सेवारत हैं। उनका चिन्मय श्रीअंग ही जहाँ सामान्य है, वहाँ उर्वशी कुछ कुरूप दासी ही तो लगेगी। यहाँ उर्वशी की ओर कौन ध्यान देने वाला था कि मुझे अपने को छिपाना पड़ता। बहुत व्यस्त-रात्रि है गोकुल में दीपावली की रात्रि। सब सायंकाल से प्रदीप सज्जित करने में लगे रहे। सखाओं के साथ श्याम-सुन्दर ही जब सोल्लास दीपमाला सजाते रहे तो गोपों, गोपियों का उल्लास-अपार होना ही था। शिशुओं का मण्डल लिये सबके गृहों पर दीप सज्जा करते रहे ये सर्वेश और मैं पहिचान सकती हूँ कि प्रत्येक दीपक के स्थान पर जो कलाकृति है, वह किसके करों की है। भगवती कमला को माता कती हूँ मैं! पुत्री अपनी माता की कृति पहिचानने में भूल तो नहीं कर सकती। मध्यरात्रि को महालक्ष्मी पूजन किया गोपों ने अपने गृहों में अत्यन्त संक्षिपत रूप में। सब शीघ्र नन्द-भवन आ गये श्रीब्रजराज के अंक में बैठे उनके कुमार के साथ अर्चा में सम्मिलित होने। इन इन्दीवर सुन्दर को रमा का अर्चन करने की सूझी तो मना कौन करेगा? पोडष भुजा आद्या परमाशक्ति महालक्ष्मी को भी इनके करों की पूजा स्वीकार करने में संकोच होता है! क्षीराब्धि-सम्भवा मेरी माता इन्दिरा तो इनके आविर्भाव से भी पूर्व आ गयी है ब्रज में और यहाँ के पत्ते-पत्ते, कण-कण को सजाने की सेवा में सावधानी से संलग्न हैं। उनका आवाहन-पूजन यहाँ कहाँ आवश्यक है। वे मुझे आते ही मिल गयीं। मैंने प्रणाम किया तो सस्मित संकेत कर दिया उन्होंने 'यहाँ यह सब नहीं! तू आ गयी है तो चुपचाप किसी सेवा में लग जा।' मध्यरात्रि के पश्चात पूजन समाप्त हुआ। उज्ज्वल बताशे, धान्य की खीलें, मल्लिका सुमन, सब अर्चा एवं नैवेद्य के उज्ज्वल उपकरण! कितने आनन्दित थे पूजा का प्रसाद पाकर शोभासिंधु सखाओं के साथ। इनको ओर इनके अग्रज को इस श्वेत सामग्री के अम्बार में क्या क्षणार्ध को क्षीरोदधि का स्मरण हुआ होगा? रात्रि तृतीय प्रहर का भी एक भाग व्यतीत हो गया तब सखा अपने गृहों को विदा हुए। इन्होंने शयन किया जननी के अंक से लगकर। सभी दासियों के साथ मुझे भी तो सेवा-व्यस्त होना था। |
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