नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
हम सबके सौभाग्य से हमें कितनी प्रतीक्षा के पश्चात् तो युवराज प्राप्त हुआ और क्रूर कंस हमारे इस सुकुमार हृदय-धन के पीछे ही पड़ गया है। वह कोई-न-कोई उत्पात गोकुल में करता ही रहता है। अब कहीं से असंख्य वृक आ गये हैं महावन में। बड़े भाई उपनन्दजी बहुत बुद्धिमान हैं। उनकी सम्मति सदा निर्दोष होती है। बहुत कठिन अवसर पर वे हमारा पथ-प्रदर्शन करते हैं। उन्होंने कल सांयकाल गोकुल-त्याग की उचित सम्मति दी। वृन्दावन सब प्रकार उपयुक्त है। मुझे प्रस्थान का प्रबन्ध तथा मार्ग में सुरक्षा का दायित्व सम्भालने को वे न भी कहते तो भी मुझे यह करना ही था। असंख्य वृक आ गये हैं कहीं से वन में और कंस कब क्या कुटिल क्रूर चेष्टा करेगा, किसे पता है। अपने गोकुल को, अपने शिशुओं को हम असुरक्षित तो नहीं छोड़ सकते। महर्षि शाण्डिल्य सर्वज्ञ हैं। शिशुओं पर असीम स्नेह है उनका। उन्होंने प्रभात में प्रस्थान का मुहूर्त सूचित करके मेरा कार्य सुगम कर दिया। अन्धकार में यात्रा बहुत आशंकाप्रद होती। वन में असंख्य वृकों के रहते ब्राह्ममुहूर्त में प्रस्थान नहीं किया जा सकता था। बालकों को बहुत शीघ्र अब उठाना आवश्यक नहीं रहा। मैंने एक-एक गोप से बात कर ली है। मैं सबसे छोटा हूँ अत: सबके घरों में जाकर देख सकता हूँ कि प्रस्थान के प्रबन्ध में क्या सहायता की जा सकती है। मेरी ताई-चाची हैं, वृद्धाएँ हैं और शेष प्राय: भाभियाँ हैं। मैं कुछ अनावश्यक सूचनाएँ भी दे जाऊँ तो कोई बुरा नहीं मानती। बालकों को मार्ग में कलेऊ कराना होगा मध्याह्न हम भोजन करेंगे मार्ग में और आगे मार्ग में ही विश्राम करेंगे रात्रि को। दूसरे दिन हम सबको वृन्दावन पहुँचकर अपने आवास व्यवस्थित करने में व्यस्त रहना पड़ेगा। अत: मैंने सबको कह दिया है कि दो दिन के लिए पर्याप्त कलेऊ, भोजन तथा बालकों के आवश्यक वस्त्र, खिलौने वे अपने साथ अपने ही छकड़ों पर रखें। शेष सब सामग्री बाँधकर छकड़ों पर पृथक एक साथ चलेगी। प्रात: हम सब यहीं गोदोहन करेंगे। |
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