नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
36. चाचा सन्नन्द-दामोदर-मुक्ति
कन्हाई केवल बाबा की ओर देखकर हँसता है। 'मैया ने बाँधा' यह बात अपने मुख से नहीं कहना चाहता। दूसरे शिशु भले बतला दें, स्वयं मैया के दोष नहीं कहेगा। भैया ब्रजपति ने रज्जुग्रंथि खोलकर अंक में उठा लिया कन्हाई को- 'तेरी मैया बहुत बुरी है! तुझे बाँधती है। अब मत जाना उसके समीप। मैं तुझे अपने साथ रखूँगा। हम चलेंगे अब यज्ञ करने। मैया को यहीं घर में रहने दे।' 'मैया चलेगी!' लो, यह तो मचलने लगा है। कन्धे से गोद में आ गया और उतरने को लटक पड़ा है। अब मैया के समीप गये बिना मानने से रहा। 'तू चल! वहाँ पूजा में चल!' नीलमणि ने दौड़कर अपनी मैया का हाथ पकड़ा। भाभी ने कितनी ममता से अंक में उठाया कन्हाई को! 'ये वृक्ष कैसे गिरे? किसने गिराया इन्हें?' यह प्रश्न हम सबको ही चिन्तित किये था। अर्जुन के इन वृक्षों में नीचे पर्याप्त ऊँचाई तक कोई शाखा नहीं थी और दोनों दो ओर गिरे थे, अत: दोनों के मध्य में शिशु सकुशल रहा; किंतु इतने भारी वृक्ष समूल उखड़कर गिरे कैसे। मैंने और प्राय: सभी दूसरे अनुभवी गोपों ने वृक्षों के आस-पास घूमकर देख लिया। दोनों में-से एक भी वृक्ष खोखला नहीं था। खोखला भी होता तो टूटकर गिरता। इसकी जड़ें मोटी थीं सुदृढ़ थीं, पर्याप्त गहराई तक गईं और दूर-दूर तक फैली थीं। अर्जुन वृक्ष की जड़ें तो पाषाण का भी भेदन करके भूमि में प्रवेश करती हैं। कोई जड़ सड़ी नहीं थी। किसी में कृमि लगने अथवा अन्य किसी रोग का लक्षण नहीं था। आँधी चली नहीं थी। चक्रवात आया नहीं था। यहाँ वृषभों ने परस्पर युद्ध भी नहीं किया था। वृषभों के धक्के से गिरने वाले ये वृक्ष थे नहीं। वृषभ लड़ते तो उनके खुरों के चिह्न होते। कोई कारण नहीं ऐसा मिला जिससे वृक्षों के गिरने का हेतु जाना जा सके। वहाँ केवल कुछ शिशु थे। कोई गोपी, सेविका वहाँ भी नहीं कि उससे पूछा जा सके। शिशुओं से ही पूछा मैंने- 'इन वृक्षों को किसने गिराया?' 'इस कनूँ ने! इसी ने ऊखल अड़ाकर खींचा।' शिशुओं की बात सदा अटपटी होती हैं। इन बच्चों के सामने ऊखल में बँधा श्याम था और वह ऊखल खींच रहा था तो ये समझते हैं कि वृक्ष ऊखल खींचने से गिर गये। 'वृक्षों की जड़ में-से एक-एक चमकते देवता निकले थे!' शिशु कहते हैं- 'वे दोनों देवता इस कन्हाई को हाथ जोड़ रहे थे। यह उनसे बातें कर रहा था। हम दूर भाग गये थे, सुना नहीं कि इसने उनसे क्या कहा। वे दोनों ऊपर आकाश में उड़ गये।' |
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