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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 52-54
उनकी वेणी खुल गयी है, नेत्रकमल बंद हैं और रत्नों के बने हुए दो बहुमूल्य कुण्डलों से उनके मुखमण्डल की अपूर्व शोभा हो रही है। दंतपंक्ति से सुशोभित मुख मानो गजमुक्ता से अलंकृत एवं उद्दीप्त है। प्रिया जी को इस अवस्था में देख भक्तवत्सल माधव ने अग्निशुद्ध महीन वस्त्र से उनके मुख को बड़े प्रेम और भक्तिभाव से पोंछा। फिर केशों को सँवारकर उनकी चोटी बाँध दी। उस चोटी में माधवी और मालती के फूलों की माला लगा दी, जिससे उसकी शोभा बहुत बढ़ गयी। वह चोटी रत्नयुक्त रेशमी डोरों से बँधी थी। उसकी आकृति सुंदर, वक्र, मनोहर और अत्यंत गोल थी। कुन्द के फूलों से भी उसका श्रृंगार किया गया था। वेणी बाँधने के पश्चात श्यामसुंदर ने प्रिया जी के भाल देश में सिंदूर का तिलक लगाया। उसके नीचे उज्ज्वल चंदन का श्रृंगार किया। फिर कस्तूरी की बेंदी से उनके ललाट की शोभा बढ़ायी। तत्पश्चात दोनों कपोलों पर चित्र-विचित्र पत्र-रचना की। नेत्रकमलों में भक्तिभाव से काजल लगाया, जिससे उनका सौंदर्य खिल उठा। फिर बड़े अनुराग से राधा के अधरों में लाली लगायी। कान में दो अत्यंत निर्मल आभूषण पहनाये। गले में बहुमूल्य रत्नों का हार पहनाया, जो उनके वक्षःस्थल को उद्भासित कर रहा था। वह हार मणियों की लड़ियों से प्रकाशित हो रहा था। तदनन्तर बहुमूल्य, दिव्य, अग्निशुद्ध तथा सब प्रकार के रत्नों से अलंकृत वस्त्र पहनाया, जो कस्तूरी और कुंकुम से अभिषिक्त था। दोनों चरणों में रत्ननिर्मित मञ्जीर पहनाये और पैरों क अंगुलियों में नखों में भक्तिभाव से महावर लगाया। जो तीनों लोकों के सत्पुरुषों द्वारा सेव्य हैं; उन श्यामसुंदर ने अपनी सेव्यरूपा प्राणवल्लभा की सेवा की। तदनन्तर सेवकोचित भक्ति से श्वेत चँवर डुलाया। यह कैसी अद्भुत बात है। इसके बाद समस्त भावों के जानकारों में श्रेष्ठ बोधकला के ज्ञाता एवं विलास-शास्त्र के मर्मज्ञ श्रीहरि ने अपनी प्राणवल्लभा को जगाया और अपने वक्षःस्थल में उनके लिए स्थान दिया। इस प्रकार श्रीराधा को जगाकर श्रीकृष्ण ने उन्हें भाँति-भाँति के पुष्पमाला, आभूषण तथा कौस्तुभमणि आदि के द्वारा सुसज्जित किया। रत्नपात्र में भोजन और जल प्रस्तुत किये। इसी समय चरण-चिह्नों की पहचानती हुई श्रीराधा की सुप्रतिष्ठित सहचरी सुशीला आदि छत्तीस गोपियाँ अन्यान्य बहुसंख्यक गोपांगनाओं के साथ वहाँ आ पहुँचीं। किन्हीं के हाथ में चंदन था और किन्हीं के हाथ में कस्तूरी। कोई चँवर लिए आयी थी और कोई माला। कोई सिन्दूर, कोई कंघी, कोई आलता (महावर) और कोई वस्त्र लिए हुए थी। कोई अपने हाथ में दर्पण, कोई पुष्पपात्र, कोई क्रीड़ाकमल, कोई फूलों के गजरे, कोई मधुपात्र, कोई आभूषण, कोई करताल, कोई मृदंग, कोई स्वर-यंत्र और कोई वीणा लिए आयी थीं। जो छत्तीस राग-रागनियाँ गोपी का रूप धारण करके गोलोक से राधा के साथ भारववर्ष में आयी थीं, वे सब वहाँ उपस्थित हुईं। कई गोपियाँ वहाँ आकर नाचने और गाने लगीं तथा कोई श्वेत चँवर डुलाकर राधा की सेवा करने लगीं। महामुने! कुछ गोपियाँ प्रसन्नतापूर्वक देवी राधा के पैर दबाने लगीं। एक ने उन्हें चबाने के लिए पान का बीड़ा दिया। इस प्रकार पवित्र वृन्दावन में श्रीराधा के वक्षःस्थल में विराजमान भगवान श्यामसुंदर कौतूहलपूर्वक गोपियों के साथ वहाँ से प्रस्थित हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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