ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मखण्ड : अध्याय 26
ब्रह्मन! पवित्र साधक आसन पर बैठकर आचमन करे। फिर संयमपूर्वक रहकर भक्तिभाव से सम्पन्न हो वेदोक्त विधि से इष्टदेव की पूजा करे। शालग्राम-शिला में, मणि में, मन्त्र में, प्रतिमा में, जल में, थल में, गाय की पीठ पर अथवा गुरु एवं ब्राह्मण में श्रीहरि की पूजा की जाये तो वह उत्तम मानी जाती है। जो अपने सिर पर शालग्राम का चरणोदक छिड़कता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान कर लिया और सम्पूर्ण यज्ञों की दीक्षा ग्रहण कर ली। जो मनुष्य प्रतिदिन भक्तिभाव से शालग्राम-शिला का जल (चरणामृत) पान करता है, वह जीवन्मुक्त होता है और अन्त में श्रीकृष्ण धाम को जाता है। नारद! जहाँ शालग्राम-शिलाचक्र विद्यमान है, वहाँ निश्चय ही चक्रसहित भगवान विष्णु तथा सम्पूर्ण तीर्थ विराजमान हैं। वहाँ जो देहधारी जानकर, अनजान में अथवा भाग्यवश मर जाता है, वह दिव्य रत्नों द्वारा निर्मित विमान पर बैठकर श्रीहरि के धाम को जाता है। कौन ऐसा साधुपुरुष है, जो शालग्राम-शिला के सिवा और कहीं श्रीहरि का पूजन करेगा; क्योंकि शालग्राम-शिला में श्रीहरि की पूजा करने पर परिपूर्ण फल की प्राप्ति होती है। पूजा के आधार[1]का वर्णन किया गया। अब पूजन की विधि सुनो। श्रीहरि की पूजा बहुसंख्यक सज्जनों द्वारा सम्मानित है। अतः शास्त्र के अनुसार उसका वर्णन करता हूँ। कोई-कोई वैष्णव पुरुष श्रीहरि को प्रतिदिन भक्तिभाव से सोलह सुन्दर तथा पवित्र उपचार अर्पित करते हैं। कोई बारह द्रव्यों का उपचार और कोई पांच वस्तुओं का उपचार चढ़ाते हैं। जिनकी जैसी शक्ति हो, उसके अनुसार पूजन करें। पूजा की जड़ है– भगवान के प्रति भक्ति। आसन, वस्त्र , पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, पुष्प, चन्दन, धूप, दीप, उत्तम नैवेद्य, गन्ध, माल्य, ललित एवं विलक्षण शय्या, जल, अन्न और ताम्बूल– ये सामान्यत: अर्पित करने योग्य सोलह उपचार हैं। गन्ध, अन्न, शैय्या और ताम्बूल– इनको छोड़कर शेष द्रव्य बारह उपचार हैं। पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, पुष्प और नैवेद्य– ये पाँच उपचार हैं। श्रेष्ठतम साधक मूल मन्त्र का उच्चारण करके ये सभी उपचार अर्पित करे। गुरु के उपदेश से प्राप्त हुआ मूल मन्त्र समस्त कर्मों में उत्तम माना गया है। पहले भूत शुद्धि करके फिर प्राणायाम करे। तत्पश्चात् अंगन्यास, प्रत्यंगन्यास, मन्त्रन्यास तथा वर्णन्यास का सम्पादन करके अर्घ्यपात्र प्रस्तुत करे। पहले त्रिकोणाकार मण्डल बनाकर उसके भीतर भगवान कूर्म (कच्छप) की पूजा करे। इसके बाद द्विज शंख में जल भरकर उसे वहीं स्थापित करे। फिर उस जल की विधिवत पूजा करके उसमें तीर्थों का आवाहन करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ प्रतीक
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