श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील कविराज गोस्वामिपाद द्वारा रचित है सारंगरंगदा टीका। ये स्वयं एक उच्च स्तर के कवि हैं। उनके रचे श्रीगोविन्दलीलामृत, श्रीचैतन्यचरितामृत आदि ग्रंथ ही इसके प्रकृष्ट प्रमाण है। इस सारंगरंगदा टीका में उनकी असाधारण विद्यावत्ता, अलौकिक पाण्डित्य एवं निगूढ़रसविचार ही निपुणता देखने में आती है। इन्होंने कर्णामृत की व्याख्या में लीलाशुक की अंतर्दशा का भावलेख्य अंकित करते हुए बहुत सी अपूर्व अनुपम लीलाओं का संयोजन किया है। वस्तुतः इस सारंगरंगदा टीका की सहायता से ही श्रीकृष्णकर्णामृत ग्रंथ श्रीराधादास्यैकनिष्ठ गौड़ीय वैष्णवं के लिए इतना आदरणीय और ऐसा आस्वाद्य बना है। उन्होंने अंतर्दशा की विस्तृत व्याख्या में बड़े सुकौशल से श्लोकों के भावों के अनुरूप रसराज्य में पहुँच कर राधारानी के आस्वादन के माध्यम से श्रीकृष्णामाधुरी का अपूर्व अमृत परिवेशन किया है। इन्होंने सारंगरंगदा टीका में श्रीगीता, श्रीमद्भागवत, विष्णुपुराण, भविष्योत्तर पुराण, रामायण, पाणिनिसूत्र, महाभाष्य, मेदिनीकोष, विश्वकोष, ब्रह्मसंहिता, यमुनाचार्यस्तोत्र, काव्यप्रकाश, जगन्नाथवल्लभ नाटक, भक्तिरसामृतसिन्धु, उज्ज्वल नीलमणि, दानकेलिकौमुदी, विदग्धमाधव, स्वतमाला आदि से उद्धवरण और प्रमाण दिए हैं। हमने इस संस्करण में मुख्य रूप से सारंगरंगदा टीका का अनुसरण कर ‘आस्वादबिंदु’ टीका प्रस्तुत की है। श्रील यदुनन्दन ठाकुर ने श्रील कविराज गोस्वामिपाद की सारंगरंगदा को उपजीव्य (आधार) बनाकर बंगभाषा में पद्यछन्द में श्रीकृष्णकर्णामृत का भाव परिवेशन किया है। श्रील यदुनन्दन ठाकुर के पद्यानुवाद को न तो श्रीलीलाशुक के कर्णामृत का पद्यानुवाद कहा जा सकता है, और न कविराज गोस्वामिपाद की सारंगरंगदा टीका का ही यथासमय अनुवाद। वे स्वयं एक प्रतिभा संपन्न कवि हैं; उन्होंने श्रील रूपगोस्वामिपाद के श्री विदग्धभाधव नाटक का और, श्रील कविराज गोस्वामिपाद के श्रीगोविन्दलीलामृत का पद्यानुवाद किया है। इसीलिए श्रीकृष्णकर्णामृत के अनुवाद में उनकी मौलिक संयोजना प्रचुर है। उन्होंने अपने बंगानुवाद में सी सरस बातों की योजना की है, जो न मूल में है, न टीका में। इससे अति सुंदर मौलिक कविप्रतिभा का निदर्शन मिला है। मैंने बहुत दिनों तक विभिन्न अवसरों पर श्रीराधाकुण्ड में श्रीकृष्णकर्णामृत के पाठ और व्याख्या के द्वारा वैष्णवसमाज की सेवा का सौभाग्य प्राप्त किया था। श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामिपाद की सारंगरंगदा टीका को मूलरूप से आधार बनाकर और कृष्णवल्लभा एवं सुबोधनी टीकाओं के विशेष-विशेष अंशों को लेकर जो चर्चा-समीक्षा हुई, उससे वैष्णववृन्द को अत्याधिक आनंद हुआ। उनमें से किसी-किसी ने मेरे आगे यह इच्छा भी व्यक्त की कि इस प्रकार श्रीकृष्णकर्णामृत का एक संस्करण प्रकाशित किया जाए। उन लोगों की इच्छा और आदेश ही इस संस्करण के प्रकाशन का मुख्य हेतु है। इसमें मूल श्लोक, अन्वय-अनुवाद, उल्लिखित तीनों टीकायें और श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद प्रकाशित किया गया है। बंगला में प्रकाशित टीकाओं में प्रचुर भूल-त्रुटियाँ है; डॉ. सुशील कुमार दे महाशय की देवनागरी लिपि में प्रकाशित टीकात्रय अपेक्षाकृत शुद्ध लगी हैं, इसलिए उसी संस्करण को आदर्श मानकर टीका का मुद्रण किया गया है। अन्वय में जटिल पदों के प्रतिवचन पद दिए गए हैं। सुबोध्य होने के कारण अधिकांश सरल पदों के प्रतिवचन नहीं दिए गए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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