श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – उच्छ्रवसित- यौवनम् (उद्गतं यौवनं यत्र तत्) तरलशैशवालंकृतम् (अतो गतप्रायं यच्छैशवं तेनालंकृतम्) मदच्छुरितलोचनम् (प्रियेक्षणहर्षेण व्याप्ते लोचने यत्र तत्) मदनमुग्धहासामृतम् (मदनो मुग्धो यस्मा-त्तादृशो हास एवामृतं यस्मिन् तत्) प्रति क्षणविलोभनं प्रणयपीत वंशीमुखम् (प्रेम्ना पीतं वंश्या मुखं येन तत्) जगत्त्रयमनोहरम् (जगत्त्रयस्य मनो हरतीति तत्) तद् मामकं जीवितं जयति (सर्वोत्कर्षेण वर्तते)।।88।। अनुवाद- उच्छवसित यौवन, तरल कैशोरसौन्दर्य से अलंकृत, मदमत्त लोचन, जिस हास्य से मदन भी मोह को प्राप्त होता है, प्रतिक्षण लोभनीय, प्रेम से वंशीवादनरत, त्रिभुवन- मनोहारी- ऐसे मेरे जीवन सर्वस्व सर्वोत्कर्ष के साथ विराज रहे हैं।।।84।। कृष्णवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पृथ्वी छन्दः
संबंधित लेख
क्रमांक | श्लोक संख्या | श्लोक | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज