श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रीवृन्दावन-वासी प्राचार्य श्रीयुत् ब्रज गोपाल दास अग्रवाल मेरे द्वारा संपादित श्रीराधारससुधानिधि, विलापकुसुमाञ्जलि प्रेमभक्तिचंद्रिका आदि बंगला ग्रंथों का निःस्वार्थ भाव से हिंदी-अनुवाद कर पहले ही से हिंदीभाषी भक्तजनों के परम कृतज्ञतापात्र हैं। संप्रति इस श्रीकृष्णकर्णामृत ग्रंथ का हिंदी अनुवाद कर आपने पाठकों को एक और अमूल्य संपदा प्रदान की है। आपके अनुवाद का वैशिष्ट्य यह है कि आपने बंगला में लिखी विषय-वस्तुओं की यथार्थ मौलिकता बनाए रखकर सहज, प्राञ्जल, सरस और मधुर भाषा का प्रयोग कर कठिन शब्दों की भी सहजबोध्य बना दिया है। आपका धैर्य, अटूट अध्यवसाय और निरलस परिश्रम प्रशंसनीय है। श्री कुण्डेश्वरी के श्रीचरणों में प्रार्थना ज्ञापन करता हूँ कि सेवा प्राण अनुवादक का व्रजवास सफल हो- वे स्वस्थ रहकर चिरकाल इसी प्रकार भक्तगण की सेवा में महतगण की अशेष कृपा पाकर धन्य हों। जय श्री राधे! परम कल्याणीय श्रीमान् महिमाचन्द्र पाठक ने इस ग्रंथ का हिंदी अनुवाद का और श्रीमान् कृष्ण चैतन्य दास ने संस्कृत टीकाओं का प्रूफ संशोधन का कार्य किया है। इन दोनों के प्रति कुण्डेश्वरी का कृपा वारि वर्षित हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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