श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – निखिल-भुवन-लक्ष्मी-नित्यलीलास्पदाभ्याम् (वैकुण्ठादिसर्वलोकेषु याः शोभा-सम्पत्तयस्तासां नित्यलीला तस्या आस्पदे गृहे ताभ्यां) कमलविपिन- वीथी- गर्व- सर्वंकषाभ्यां (कमलवन श्रेणीनां सौगन्ध्यादिगुणैर्यो गर्वस्तस्य सर्वंकषे छेदके ये ताभ्यां) प्रणमदभयदान- प्रौढ़िगाढादृताभ्याम्। (प्रणमद्भ्यः कृतप्रणाममात्रेभ्यो यदभयदानं तत्र या प्रौढिरसाधारण-गर्वाविष्करणं तयादृते ये ताम्याम्) कृष्णपादाम्बुजाभ्यां मम चेतः किमपि सुखं वहतु (निरन्तरमाप्नोतु)।।12।। अनुवाद- जो श्रीकृष्णपादपद्म निखिलभुवनशोभा के नित्यलीलास्पद हैं, जो श्रीपादपद्म कमलश्रेणी की शोभा के गर्व को खर्व करते हैं, जो प्रणतजनों को आश्रय देने में असाधारण सामर्थ्यवान् होने के कारण आदृत (पूज्य) हैं, उन्हीं श्रीकृष्णचरण कमलों सले मेरा चित्त सर्वदा कोई अनिर्वचनीय सुख प्राप्त करे।।12।। कृष्णवल्लभ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मालिनी छन्दः
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