श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – तरुणारुण- करुणामय-विपुलायतनयनम् (करुणारुणे अत्यरुणे करुणामये प्रियजनस्य दुःखासहिष्णुनी विपुले विशाले आयते अतिदीर्घे नयने यस्य तत्।) कमलाकुचकलसीभर-विपुलीकृत पुलकम् (कमलायाः श्रीराधायाः कुचकलसयोः भरेण स्पर्शातिशयेन विपुलीकृतपुलको यस्य तत्) मुरलीरव-तरलीकृतमुनिमानसनलिनम् (मुरलीरवेण तरलीकृतानि मुनीनां मानस- नलिनानि येन तत्) मधुराधरममृतम् (मधुरः सरसः मनोहरः च अधरो यस्य इदममृतम्) मम मदचेतसि (मदयुक्ते चेतसि) खेलतु (विलसतु)।।18।। अनुवाद- जिनके नेत्र तरुण-अरुण करुणामय विपुल और आयत (बड़े, विस्तृत) हैं, जो श्रीराधा के कुचकुम्भों के स्पर्श से विपुल पुलक से भरे हैं, जिनकी मुरलीध्वनि से मुनियों के मन नलिनी की तरह कोमल हो जाते हैं, जिनके अधर अति मनोहर हैं- ऐसा कोई अमृत मेरे प्रमत्त चित्त में विलास करे।।18।। कृष्णवल्लभा
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ललितगतिश्छन्दः
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