श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – एतन्नाम विभूषणं बहुमतम् (एतद् वक्त्रं नाम प्रकाश्ये, बहुमतं विभूषणम्) वेशाय शेषैरलम् (अतः शेषैः कुण्डलादिभिरलम्) वक्त्र द्वित्रिविशेषकान्तिलहरी विन्यास धन्याधरम् (द्वौ वा त्रयो विशेषा यस्यां तादृशी या कान्तिलहरी तस्या विन्यासेन धन्योऽधरो यस्मिन् तत्) शिल्पैरल्पधियामगम्यविभवैः श्रृंगारभंगीमयम् (अल्प बुद्धीनाम अगम्यविभवैः श्रृंगारस्य भंगी विशिष्ट वा परिपाटी तत्प्रचुरम्) चित्रं चित्रमहो विचित्रमहहो चित्रं विचित्रं महः (अहो चित्रं चित्रं अत्याश्चर्ये वीप्सा पुनः सविस्मये अहहो विचित्रं चित्रं विचित्रं महः)।।59।। अनुवाद- यह जो मुख है, यही बहुमत विभूषण है; वेश के लिए अन्य मणिमय विभूषणों की क्या आवश्यकता? यह मुख दो वा तीन विशेष कान्तिलहरियों के विन्यास से परिशोभित अधरों से युक्त है। अल्पबुद्धिवालों के ज्ञान के लिए अगम्य शिल्पवैभव का कारण यह श्रृंगारभंगिमायुक्त ज्योतिःपुञ्ज चित्र, अति चित्र, विचित्र, अति विचित्र है !!।।59।। कृष्णवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शार्द्दूलविक्रीडितं छन्दः
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