श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील भट्टगोस्वामिपाद कहते हैं- श्री लीलाशुक श्रीकृष्णचंद्र का परम प्रेम आविर्भावकत्व और परम दुर्लभत्व मानकर अपनी परममहाप्रीति – भक्तिनिष्ठा द्वारा दुर्लभता का भाव बता रहे हैं। यह अति आश्चर्यजनक वस्तु क्या है? विश्व में जो सुखविशेषरूपी वस्तु है, यह उससे भी अति विलक्षण है। अनुभव ही इस बात का साक्षी है; ये हम लोगों के नेत्रों में कोई अनिर्वचनीय प्रेमधारा बरसा रहे हैं। भक्त के प्रेम के अनुसार श्रीकृष्ण का प्रेमधारा- वर्षण स्वाभाविक है। श्रीमैत्रेय ऋषि ने विदुर जी से कहा है-
‘शरणागत कर्दम ऋषि के प्रति भगवान् का चित्त अतिशय कृपा पर वश होने से उनके नेत्रों से जो अश्रुबिन्दु गिरे थे, उन्हीं से ‘बिन्दुसार’ नामक सरोवर बना है।’ श्री सुदामा विप्र को देखकर सख्यरस में द्वारकानाथ ने अजस्र प्रेमधारा बरसाई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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