श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
स्वान्तर्दशामूलक अर्थ : राधारानी के साथ श्रीकृष्ण का लीलाविलास देखने का सौभाग्य मेरा और नहीं होगा। लीला स्वाभाविकरूप से ही मधुमय है। चमत्कारिता से पूर्ण। उसमें फिर श्रीकृष्णलीला और भी अधिक मधुमय। विशेषतः गोपाललीला की तो तुलना नहीं। वृन्दावन में वे “सर्वाद्भुत चमत्कारलीलाकल्लोल वारिधिः”[2] वे सभी को आश्चर्यचकित करने वाले लीलारस के कल्लोलित सिन्धु हैं। बाह्यदशा से जुड़े अर्थ में कहा जा सकता है कि श्रीलीलाशुक ने नेत्रों से श्रीकृष्ण को आलिंगन करने की इच्छा की है, कारण- वे समझते हैं कि देह द्वारा आलिंगन प्राप्त करना अतिशय दुर्लभ है। देह द्वारा भगवान की अलिंगन प्राप्ति यथार्थतः दुर्लभ है। भगवान का अपने भक्त को अलिंगन प्रदान करना उनकी परम प्रसन्नता का लक्षण है और भक्त के लिए भी यह आलिंगन प्राप्ति परम सौभाग्य का ही परिचायक है। भगवत पार्षद हनुमान जी ने लंका से लौटकर श्रीसीतादेवी के समाचार रामचंद्र जी को सुनाये, तो श्रीरामचंद्र बोले- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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