श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रीराधा की ग्लानि का दृष्टान्त (हंसदूत में)-
ललिताजी हंस को दूत समझकर बोलीं- ‘हे खगश्रेष्ठ ! तुम मथुरा रह रहे श्रीकृष्ण से एक बात कहना, कुवलयाक्षी (कमलनयनी) श्रीराधा अतिशय मदनपीड़ा से अंतिम दसा को प्राप्त हो गई हैं; वे प्राणधारण करने में अब और समर्थ नहीं यह जानकर सखियों ने प्रतिकार (उपचार) की आशा त्याग दी है। किन्तु तुम्हारी आशारूपी सहचरी उन्हें किसी प्रकार भी नहीं छोड़ रही, यहाँ तक कि निःसृतप्राय प्राणों (जो प्राण निकलने ही वाले हैं, उन प्राणों) की बलपूर्वक रक्षा कर रही है, अतएव तुम और विलम्ब न कर अतिशीघ्र वृन्दावन आओ।’
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भ.र.सि. 2/4/14
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