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- नारायणस्त्वमित्यादौ।
- नारायणोऽङ्गमित्यादि, विष्णुर्महान्
- स इह यस्य कलाविशेष इत्यादि।
- सर्वलक्ष्मी सर्वमयी कान्तिसंमोहनी परा।
- लक्ष्मी लक्ष्मीस्वरूपा इत्यादि।।
- यद्यपिह राधा सर्वश्रेष्ठा सर्वाधिका। अति लज्जाशीला सर्व गुणेते अधिका।।
- सेइ लज्जाहैते सदा अधोमुखे रहे। प्रथमेइ कृष्णपदनख निरीक्षये।।
- कृष्णपदनख देखि शोभासिन्धु माझे। मग्न हैया नेत्र हर्षे मोह हैला पाछे।।
- लीला गाढ़ अनुरागे जे भाव विशेष। उद्गार हइल तारकि कहिब शेष।।
- ताते धर्म सुमर्यादा लज्जादि छाड़िया। कृष्णपदे स्वयम्बर रस लभे जाइया।।
- कृष्णेर माधुर्य निज अनुरागमय। प्रतिक्षणे नव नव अनुभाव हय।।
- नव नव वर्तमान प्रयोगेइ रहे। क्षणे क्षणे बाढ़े दुहुँ केह उन नहे।।
- एबे शुनो गुरुपादाश्रय विशेषण। जे गुरुर पादपद्य कैले आश्रयण।।
- काम क्रोध लोभ मोह मद अभिमान। चक्षु आदि पञ्चकलेश अति बलवान्।।
- बाषट्टि प्रकार मति अन्तरायगण। गुरुपदनखालम्बे जिने सर्वगण।।
- किम्बा वर्त्मोद्देश श्रील गुरु एक हय। मंत्रगुरु शिक्षागुरु एइ गुरुत्रय।।
- हेथा लीलाशुकेर गुरु वेश्या चिन्तामणि। वर्त्मोद्देशी गुरु तेहों एइ मते जानि।।
- ताँर वाक्यमात्रे हैल कृष्ण अनुराग। ताँहार उत्कर्ष तेइँ कहे महाभाग।।
- एइतो प्रथम श्लोकेर कहिलाम अर्थ। श्रीकृष्णदास कविराज टीका प्रमाणार्थ।। 1।।
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