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- “जयत्यर्थेन नमस्कार आक्षिप्यते”
- तैछे मोर इष्टदेव जय भगवान्। मयूरेर पिच्छ शिरे जार अविराम।।
- वृन्दावनबिहारी कृष्ण पूर्ण रसमय। जय शब्दे नित्यलीला वृन्दावने कय।।
- तेहो मोर शिक्षागुरु बन्दो ताँर पाय। जाँर शिक्षाय प्रेमभाव उपजय।।
- कृष्णेर माधुर्यगुण अनुभाव हैते। शिक्षागुरु करि बोले कृष्ण एइ रीते।।
- शिखिपिच्छमौलि नामे विग्रह स्फुरिल। मदन मदनराज षेकत हइल।।
- भूषण भूषण अंग ललित त्रिभंग। कैशोर वयस वेश रसमय अंग।।
- जाँर ऊर्द्ध अन्य नाहि अखिलेर माझे। व्यास शुक भागवते जारे वर्णियाछे।।
- एरूप माधुर्य कृष्णेर स्फूर्ति हैल जबे। अंगेर उपभोग्य विचारये तबे।।
- जतेक पदार्थ आछे सब विचारिल। केह अंग तुल्य नहे अति तुच्छ हैल।।
- कृष्णापदनख शोभा सबारे जिनिल। एतो विचारिते मन आर उपजिल।।
- श्रीराधिका का चित्त हरे पदनख शोभा। शब्द श्लेषे समाधान करे हैया शोभा।।
- जेइ कृष्णपादकल्पतरु शोभावरे। कौमल्य अरुण सर्वाभीष्ट पूर्ण करे।।
- ताहार पल्लव हय अंगलीरगण। ताहार शेखर नखाग्र मनोरम।।
- जत शोभा जत लीला जत रसगण। पदनख स्वयम्बर हेन सुखगण।।
- आलिंगन पाशाखेला नर्म जलकेलि। सुरतादि लीला जार जय शोभा मेलि।।
- किम्वा सौन्दर्यादि पातिव्रत्य आदिगुणे। सौभाग्य वैदग्धि आदि मनोरमे।।
- गौरी अरुन्धती आदि हैते श्रेष्ठा अति। व्रजकिशोरिका हैते जेहों कलावती।।
- सर्व जय योग्या जेंहो लक्ष्मीर अंशिनी। सर्वत्र उत्कर्षा हय राधा ठाकुरवाणी।।
- कृष्णे जेन मूल नारायण अवतारी। राधा तेन मूललक्ष्मी अंशिनीत्वे बोलि।।
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