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- नानाभंगीगण ताते, सेइ तरंगेर माते
- मदन अनंग तार नाम।
- ताहाते रचना वेश, जाहाते भुलाय देश
- सेइ मुक्ता अति अनुपम।।
- किशोर वयस वेश, सर्व तापहराशेष
- अति सुशीतल कृष्ण अंग।
- श्रृंगार तरंग भंगी, तरंग श्रृंगार संगी
- संगलित माधुर्य तरंग।।
- एतेक कहिते पुनः, आर देखे मनोरम
- संकेत मधुर वेणुध्वनि।
- राइर अगम्य जाहा, प्रकाशे गोविन्द ताहा
- रासमध्ये शुने सर्व जनि।।
- यमुना निर्मल-जले, प्रफुल्ल कमल भरे
- ताहार निकट तीरोपरे।
- प्रफुल्ल अशोक कुञ्जे, झंकारे भ्रमरा पुञ्जे
- तथा जाइते कहेन राइरे।।
- देखिया गोविन्द-रीत, लीलाशुक हरषित
- कहे निज सब सखीगणे।
- अतिशय श्लाघ्य मानि, कहे कृष्ण मर्मवाणी
- एक श्लोक करि उच्चारणे।।14।।
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