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- कुण्डलमण्डित गण्ड अधर माधुरी। मन्द-मन्द हास्य ताहे वचन चातुरी।।
- माधुर्यप्रवाहे मग्न कृष्णेर आनन। देखो देखो स्वमाधुर्ये करये मज्जन।।
- कहितेइ समग्र विशेष स्फूर्ति हैला। विवरिया सेइ कथा कहिते लागिला।।
- नवीन यौवन वयः उदय हइल। चरम कैशोर स्थिर हइया रहिल।।
- चाँचर केशेर चूड़ा ताते मनोहर। ताहाते बर्हिया शोभे परम सुन्दर।।
- नटन-गमने मन्द वाता से दोलाय। ताहार विलासे सदा भुवन भूलाय।।
- बिम्बाधारे विलास-मुरली मनोहर। स्वरभंगि आलापने माधुरी विस्तार।।
- केवल अमृतध्वनि सदा बरिषय। शुष्क काष्ठ आदिगणे जीवन रचय।।
- ताहे मुग्ध हैया रहु गोपांगनागण। चुम्बनालिंगनेसदा करये सेवन।।
- तथा जगज्जने मने स्पर्श-तृष्णा हय। हेनो रूप शोभा सखि ! वर्णन ना हय।।
- गोपीकिशोरीर मध्ये राधा गुणवती। रासमध्ये देखो कृष्णेर जाते आति आर्ति।।
- दुँहु स्कन्धे दुँहु बाहु आरोपण करि। अन्योन्ये नाचे सुखे सर्व मनोहारी।।
- राधातेइ कृष्ण – मन – नयन विलासे। दरशने कार मने सुख जे ना आइसे।।
- एइतो कहिलो श्लोकेर अंतर्दशार अर्थ। बाह्य अर्थ स्पष्ट आछे संगी प्रति सर्व।।
- त्रिजगतेर प्रधान एक अभिराम रूप। वृन्दावने आछे सर्व माधुर्येर भूप।।
- कहितेइ पुनः अति माधुर्य स्फुरिल। सम सखी प्रति कहे लालसा बाढ़िल।।4।।
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