|
- तबे स्फूर्ति साक्षात्कार भ्रम अतिशय। पञ्च श्लोके विशेषिया करिलो निश्चय।।
- साक्षात्-दर्शन तबे हइलो ताहार। वाक्य – मन अगोचर वर्णना प्रचार।।
- अष्टविंशति तार श्लोक मनोहर। उक्ति प्रत्युक्ति कृष्ण संगे तार पर।।
- सप्तदश श्लोके ताहा करिलो विस्तार। एइरूपे क्रमे अर्थ करिए प्रचार।।
- ताहार प्रथम लीला राधिकार सने। निभृते करिते साध बाढ़े कृष्णमने।।
- सर्वसमाधान लागि सर्वगोपीसने। बाहु-प्रसारादि लीला करे हर्ष मने।।
- राधा आर गोपीगणेर उत्कण्ठा बाड़ाइते। रासे नाना लीला करे कृष्ण नानामते।।
- राधा आदि गोपांगना सने कृष्णचंद्र। रासलीला करे मने पाइया आनन्द।।
- सेइ रासलीला स्फूर्ति हैलो लीलाशुके। निज सम सखी प्रति कहे निज मुखे।।
- प्रथमतः कृष्णेर लावण्य-छटा सने। भूषण अम्बर कान्ति घटा उच्छलने।।
- तैछे गोपांगना-अंग-लावण्येर छटा। तार भूषण वास ज्योतिः पुञ्ज घटा।।
- निर्विशेष ज्योतिः पुञ्ज देखि लोभ हैल। सम्भ्रम हैये किछु कहिते लागिल।।
- निज पर प्रकाशक एइ ज्योतिः पुञ्ज। मन-नेत्र-रसायन सर्वजनरञ्ज।।
- आभार मनेतो सदा रहुक लागिया। तिल एक कभु जेनो ना छाड़ाये हिया।।
- एतेक कहिते अल्प विशेष स्फुरिला। ताहार कारणे किछु कहिते लागिला।।
|
|