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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 113
इस प्रकार कृपालु भगवान ने पृथ्वी का भार हल्का किया। पुनः द्वारका में जाकर चिरकाल तक निवास किया और राजा उग्रसेन की आज्ञा से मृतवत्सा ब्रह्माणी के पुत्रों को जीवन-दान दिया। उन्होंने उन पुत्रों को मृतक स्थान से लाकर उनकी माता को समर्पित कर दिया। यह देखकर देवकी को परम संतोष हुआ; उन्होंने भी अपने मरे हुए पुत्रों को लाने की याचना की। तब श्रीकृष्ण ने अपने सहोदर भाइयों को मृतक स्थान से लाकर माता को सौंप दिया। तदनन्तर जो अपने घर से शरणार्थी होकर द्वारका में आये थे; उन सुदामा ब्राह्मण की दरिद्रता को तत्काल ही दूर कर दिया। भक्तवत्सल्य भगवान ने भक्त के चिउड़ों की कनी का स्वयं भोग लगाकर उन्हें सात पीढ़ी तक स्थिर रहने वाली राजलक्ष्मी प्रदान की। जैसे इंद्र अमरावती में राज्य करते हैं, उसी प्रकार उनका भूतल पर राज्य हो गया। वे ऐसे धनाढ्य हो गये, मानो धन के स्वामी कुबेर ही हों। तत्पश्चात उन्होंने सुदामा को निश्चल हरिभक्ति, अपनी दुर्लभ दासता और अविनाशी गोलोक में यथेष्ट उत्तम पद प्रदान किया। मुने! फिर परिजात हरण के साथ-साथ उन्होंने इंद्र को गर्व को दूर किया, सत्यभामा से मनोवाञ्छित पुण्यक व्रत का अनुष्ठान कराया और सर्वत्र नित्य-नैमित्तिक कर्मों की उन्नति की। उस व्रत में अपने-आपको महर्षि सनत्कुमार के प्रति दक्षिणारूप में समर्पित कर दिया। ब्राह्मणों को भोजन से तृप्त करके उन्हें हर्षपूर्वक रत्नों की दक्षिणा दी। इस प्रकार सत्यभामा के उत्कृष्ट मान का सब ओर विस्तार किया। मुने! रुक्मिणी तथा अन्यान्य रानियों के नये-नये सौभाग्य को, वैष्णवों, देवताओं और ब्राह्मणों के पूजन को तथा नित्य-नैमित्तिक कर्मों को सर्वत्र बढ़ाया। उन प्रभु ने उद्धव को परम आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया। रण के अवसर पर अर्जुन को गीता सुनायी। कृपालु प्रभु ने कृपापरवश हो पृथ्वी को निष्कण्टक करके युधिष्ठिर को राजलक्ष्मी प्रदान की। दुर्गा को वैष्णवी ग्रामदेवता के स्थान पर नियुक्त किया। रमणीय रैवतक पर्वत पर अमूल्य रत्ननिर्मित मंदिर में पार्वती की प्रसन्नता के लिए नाना प्रकार के नैवेद्यों और मनोहर धूप-दीपों द्वारा करोड़ों हवनों से संयुक्त शुभ यज्ञ कराया। उसमें बहुत से ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। परमेश्वर गणेश का पूजन किया; उस समय उन्हें नैवेद्यरूपम अत्यंत स्वादिष्ट, परम तुष्टिकारक तिलों के पाँच लाख लड्डू, स्वस्तिकाकार अमृतोपम सात लाख मोदक, शक्कर की सैकड़ों राशियाँ, पके हुए केले के फल, दस लाख पूये, मिष्टान्न, मनोहर स्वादिष्ट खीर, पूरी कचौड़ी, घी, माखन, दही और अमृत तुल्य दूध निवेदित किया। फिर धूप, दीप, पारिजात-पुष्पों की माला, सुगन्धित चंदन, गन्ध और अग्निशुद्ध वस्त्र प्रदान किया। करोड़ों हवनों से युक्त शुभ यज्ञ कराया, ब्राह्मणों को जिमाया और गणेश्वर का स्तवन किया। उस समय दस प्रकार के बाजे बजवाये। साम्ब ने कुष्ठ रोग के विनाश के लिए पूरे वर्षभर तक अनुपम उपहारों द्वारा सूर्य का पूजन किया, उस समय मातासहित साम्ब को हविष्यान्न का भोजन कराया गया। तब स्वयं सूर्यदेव ने प्रकट होकर साम्ब को वरदान दिया और अपना स्तोत्र प्रदान किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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