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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 13
वे बोलीं– ‘मुने! आप स्वात्माराम महर्षि हैं, आपसे कुशल-मंगल पूछना यद्यपि उचित नहीं है, तथापि इस समय मैं आपका कुशल-समाचार पूछ रही हूँ। अबला बुद्धिहीना होती है। अतः आप मेरे इस दोष को क्षमा कर देंगे। साधुपुरुष सदा ही मूढ़ मनुष्यों के दोषों को क्षमा करते रहते हैं।’ तदनन्तर अंगिरा, अत्रि, मरीचि और गौतम आदि बहुत-से ऋषि-मुनियों के नाम लेकर यशोदा ने पूछा – ‘प्रभो! इन पुण्य श्लोक महात्माओं में से आप कौन हैं। कृपया मुझे बताइये। यद्यपि आपसे उत्तर पाने के योग्य मैं नहीं हूँ, तथापि आप मुझे मेरी पूछी हुई बात बताइये। आप-जैसे महात्मा पुरुष प्रसन्न मन से शिशु को आशीर्वाद देने योग्य हैं। निश्चिय ही ब्राह्मणों का आशीर्वाद तत्काल पूर्ण मंगलकारी होता है।’ ऐसा कहकर नन्दरानी भक्तिभाव से मुनि के सामने खड़ी हो गयीं। उस सती ने नन्दराय जी को बुलाने के लिये चर भेजा। यशोदा जी की पूर्वोक्त बातें सुनकर मुनिवर गर्ग हँसने लगे। उनके शिष्य-समूह भी हास्य की छटा से दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए जोर-जोर से हँस पड़े। तब उन शुद्धबुद्धि महामुनि गर्ग ने यथार्थ हितकर, नीतियुक्त एवं अत्यन्त आनन्ददायक बात कही। श्रीगर्ग जी बोले– देवि! तुम्हारा यह समयोचित वचन अमृत के समान मधुर है। जिसका जिस कुल में जन्म होता है, उसका स्वभाव भी वैसा ही होता है। समस्त गोपरूपी कमलवनों के विकास के लिये गोपराज गिरिभानु सूर्य के समान हैं। उनकी पत्नी का नाम सती पद्मावती है, जो साक्षात पद्मा (लक्ष्मी)– के समान हैं। उन्हीं की कन्या तुम यशोदा हो, जो अपने यश की वृद्धि करने वाली हो। भद्रे! नन्द और तुम जो कुछ भी हो, वह मुझे ज्ञात है। यह बालक जिस प्रयोजन से भूतल पर अवतीर्ण हुआ है, वह सब मैं जानता हूँ। निर्जन स्थान में नन्द के समीप मैं सब बातें बताऊँगा। मेरा नाम गर्ग है। मैं चिरकाल से यदुकुल का पुरोहित हूँ। वसुदेव जी ने मुझे यहाँ ऐसे कार्य के लिये भेजा है, जिसे दूसरा कोई नहीं कर सकता। इसी बीच में गर्ग जी का आगमन सुनते ही नन्द जी वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने दण्ड की भाँति पृथ्वी पर माथा टेक कर मुनीश्वर को प्रणाम किया। साथ ही उनके शिष्यों को भी मस्तक झुकाया। उन सब ने उन्हें आशीर्वाद दिये। इसके बाद गर्ग जी आसमन से उठे और नन्द-यशोदा को साथ ले सुरम्य अन्तःपुर में गये। उस निर्जन स्थान में गर्ग, नन्द और पुत्र सहित यशोदा इतने ही लोग रह गये थे। उस समय गर्ग जी ने यह गूढ़ बात कही। श्री गर्ग जी बोले– नन्द! मैं तुम्हें मंगलकारी वचन सुनाता हूँ। वसुदेव जी ने जिस प्रयोजन से मुझे यहाँ भेजा है, उसे सुनो। वसुदेव ने सूतिकागार में आकर अपना पुत्र तुम्हारे यहाँ रख दिया है और तुम्हारी कन्या वे मथुरा ले गये हैं। ऐसा उन्होंने कंस के भय से किया है। यह पुत्र वसुदेव का है और जो इससे ज्येष्ठ है, वह भी उन्हीं का है। यह निश्चित बात है। इस बालक का अन्नप्राशन और नामकरण-संस्कार करने के लिये वसुदेव ने गुप्तरूप से मुझे यहाँ भेजा है। अतः तुम व्रज में इन बालकों के संस्कार की तैयारी करो। तुम्हारा यह शिशु पूर्ण ब्रह्मस्वरूप है और माया से इस भूतल पर अवतीर्ण हो पृथ्वी का भार उतारने के लिये उद्यमशील है। ब्रह्मा जी ने इसकी आराधना की थी। अतः उनकी प्रार्थना से यह भूतल का भार हरण करेगा। इस शिशु के रूप में साक्षात राधिकावल्लभ गोलोकनाथ भगवान श्रीकृष्ण पधारे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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