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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्णजन्मखण्ड: अध्याय 8
जलपान आभूषण पूजोपयोगी दातव्य द्रव्यों का दान करके व्रत के स्थान में रखा हुआ द्रव्य श्रीहरि को ही समर्पित कर देना चाहिये। उस समय इस प्रकार कहे– ‘परमेश्वर! वृक्षों के बीजस्वरूप ये स्वादिष्ट और सुन्दर फल वंश की वृद्धि करने वाले हैं। आप इन्हें ग्रहण कीजिये।’ आवाहित देवताओं में से प्रत्येक का व्रती पुरुष पूजन करे। पूजन के पश्चात भक्तिभाव से उन सबको तीन-तीन बार पुष्पांजलि दे। सुनन्द, नन्द और कुमुद आदि गोप, गोपी, राधिका, गणेश, कार्तिकेय, ब्रह्मा, शिव, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, दिक्पाल, ग्रह, शेषनाग, सुदर्शन चक्र तथा श्रेष्ठ पार्षदगण– इन सबका पूजन करके समस्त देवताओं को पृथ्वी पर दण्डवत प्रणाम करे। तदनन्तर ब्राह्मणों को नैवेद्य देकर दक्षिणा दे तथा जन्माध्याय में बतायी गयी कथा का भक्तिभाव से श्रवण करे। उस समय व्रती पुरुष रात में कुशासन पर बैठकर जागता रहे। प्रातःकाल नित्यकर्म सम्पन्न करके श्रीहरि का सानन्द पूजन करे तथा ब्राह्मणों को भोजन कराकर भगवन्नामों का कीर्तन करे। नारदजी ने पूछा – वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ नारायण देव! व्रतकाल की सर्वसम्मत वेदोक्त व्यवस्था क्या है? यह बताइये। साथ ही वेदार्थ तथा प्राचीन संहिता का विचार करके यह भी बताने की कृपा कीजिये कि व्रत में उपवास एवं जागरण करने से क्या फल मिलता है अथवा उसमें भोजन कर लिया जाए तो कौन-सा पाप लगता है? भगवान नारायण ने कहा– यदि आधी रात के समय अष्टमी तिथि का एक चौथाई अंश भी दृष्टिगोचर होता हो तो वही व्रत का मुख्य काल है। उसी में साक्षात श्रीहरि ने अवतार ग्रहण किया है। वह जय और पुण्य प्रदान करती है; इसलिये ‘जयन्ती’ कही गयी है। उसमें उपवास-व्रत करके विद्वान पुरुष जागरण करे। यह समय सबका अपवाद, मुख्य एवं सर्वसम्मत है, ऐसा वेदवेत्ताओं का कथन है। पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने भी ऐसा ही कहा था। जो अष्टमी को उपवास एवं जागरणपूर्वक व्रत करता है, वह करोड़ों जन्मों में उपार्जित पापों से छुटकारा पा जाता है; इसमें संशय नहीं है। सप्तमीविद्धा अष्टमी का यत्नपूर्वक त्याग करना चाहिये। रोहिणी नक्षत्र का योग मिलने पर भी सप्तमीविद्धा अष्टमी को व्रत नहीं करना चाहिये; क्योंकि भगवान देवकी नन्दन अविद्ध-तिथि एवं नक्षत्र में अवतीर्ण हुए थे। यह विशिष्ट मंगलमय क्षण वेदों और वेदांगों के लिये भी गुप्त है। रोहिणी नक्षत्र बीत जाने पर ही व्रती पुरुष को पारणा करनी चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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