ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 27
बेटा! माया का कारण, मायावियों के पाञ्चभौतिक शरीर और संकेतपूर्वक नाम– ये प्रातःकाल के स्वप्नसदृश निर्रथक हैं। परमात्मा के अंशभूत आत्मा के चले जाने पर भूख, निद्रा, दया, शान्ति, क्षमा, कान्ति, प्राण, मन तथा ज्ञान सभी चले जाते हैं। जैसे राजाधिराज के पीछे नौकर-चाकर चलते हैं, उसी प्रकार बुद्धि तथा सारी शक्तियाँ उसी का अनुगमन करती हैं; अतः तुम यत्नपूर्वक श्रीकृष्ण का भजन करो। बेटा! कौन किसके पितर हैं और कौन किसके पुत्र हैं। ये सभी इस दुस्तर भवसागर में कर्मरूपी लहरियों से प्रेरित हो रहे हैं। पुत्र! ज्ञानी लोग विलाप नहीं करते, अतः अब तुम भी रुदन मत करो; क्योंकि रोने के कारण आँसुओं के गिरने से मृतकों को निश्चय ही नरक में जाना पड़ता है।[1] भाई-बन्धु आदि कुटुम्ब के लोग जिस सांकेतिक नाम का उच्चारण करके रुदन करते हैं, उसे वे सौ वर्षों तक रोते रहने पर भी नहीं पा सकते– यह निश्चित है; क्योंकि त्वचा आदि पृथ्वी के अंश को पृथ्वी, जलांश को जल, शून्यांश को आकाश, वायु के अंश को वायु तथा तेजांश को तेज ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार सभी अंश अपने-अपने अंशों में विलीन हो जाते हैं; फिर रोने से कौन वापस आयेगा। मरने के बाद तो नाम, शास्त्र, ज्ञान, यश और कर्म की कथामात्र अवशिष्ट रह जाती है। इसलिये जो वेद विहित पारलौकिक कर्म है, इस समय तुम वही करो; क्योंकि जो परलोक के लिये हितकारी हो, वही वास्तव में पुत्र है और वही बन्धु है। भृगु के उस वचन को सुनकर महासाध्वी रेणुका ने उसी क्षण शोक का परित्याग कर दिया और मुनि से कहना आरम्भ किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ज्ञानिनो मा रुदन्त्येव मा रोदीः पुत्र साम्प्रतम्। रोदनाश्रुप्रपतनान्मृतानां नरकं ध्रुवम्।।-(गणपतिखण्ड 27। 62)
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