ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 54
सूर्यपुत्र श्राद्धदेव जो विष्णु के भक्त हैं, सातवें मनु कहे गये हैं (इन्हीं को वैवस्वत मनु कहते हैं)। सूर्य के दूसरे वैष्णव पुत्र सावर्णि आठवें मनु हैं। विष्णुप्रतपरायण दक्षसावर्णि नवें मनु हैं। ब्रह्मज्ञानविशारद ब्रह्मसावर्णि दसवें मनु हैं। ग्यारहवें मनु का नाम धर्मसावर्णि है। वे धर्मिष्ठ, वरिष्ठ तथा सदा ही वैष्णवों के व्रत का पालन करने वाले हैं। ज्ञानी रुद्रसावर्णि बारहवें मनु हैं तथा धर्मात्मा देवसावर्णि को तेरहवाँ मनु कहा गया है। महाज्ञानी चन्द्रसावर्णि चौदहवें मनु हैं। मनुओं करी जितनी आयु होती है, उतनी ही इन्द्रों की भी होती है। ब्रह्मा का एक दिन चौदह इन्द्रों से अविच्छिन्न कहा जाता है। जितना बड़ा उनका दिन होता है, उतनी ही बड़ी उनकी रात भी होती है। नरेश्वर! उसे ब्राह्मी निशा के नाम से जानना चाहिये। उसी को वेदों में ‘कालरात्रि’ कहा गया है। राजन! ब्रह्मा का एक दिन एक छोटा कल्प माना गया है। महातपस्वी मार्कण्डेय ऐसे ही कल्पों से सात कल्प तक जीवित रहते हैं। ब्रह्मा का दिन बीतने पर ब्रह्मलोक से नीचे के सारे लोक प्रलयाग्नि से जलकर भस्म हो जाते हैं। वह अग्नि सहसा संकर्षण (शेषनाग)– के मुख से प्रकट होती है। उस समय चन्द्रमा, सूर्य और ब्रह्माजी के पुत्रगण निश्चय ही ब्रह्मलोक में चले जाते हैं। जब ब्रह्मा की रात बीत जाती है, तब वे पुनः सृष्टि का कार्य प्रारम्भ करते हैं। ब्रह्मा की रात्रि में जो लोकों का संहार होता है, उसे ‘क्षुद्र प्रलय’ कहते हैं। उसमें देवता, मनु और मनुष्य आदि दग्ध हो जाते हैं। इस प्रकार जब ब्रह्मा के तीस दिन-रात व्यतीत हो जाते हैं, तब उनका एक मास पूरा होता है। वैसे ही बारह महीनों का उनका एक वर्ष होता है। इस प्रकार ब्रह्मा के पंद्रह वर्ष व्यतीत होने पर एक प्रलय होता है, जिसे वेदों में ‘दैनन्दिन प्रलय’ कहा गया है। प्राचीन वेदज्ञों ने उसी को ‘मोहरात्रि’ की संज्ञा दी है। उसमें चन्द्रमा, सूर्य आदि; दिक्पाल, आदित्य, वसु, रुद्र मनु, इन्द्र, मानव, ऋषि, मुनि, गन्धर्व तथा राक्षस आदि; मार्कण्डेय, लोमश और पेचक आदि चिरजीवी; राजा इन्द्रद्युम्न, अकूपार नामक कच्छप तथा नाडीजंघ नामक बक – ये सब-के-सब नष्ट हो जाते हैं। ब्रह्मलोक के नीचे के सब लोक तथा नागों के स्थान भी विनाश को प्राप्त हो जाते हैं। ऐसे समय में ब्रह्मपुत्र आदि सब लोग ब्रह्मलोक में चले जाते हैं। दैनन्दिन प्रलय व्यतीत होने पर ब्रह्मा जी पुनः लोकों की सृष्टि आरम्भ करते हैं। इस प्रकार सौ वर्षों तक ब्रह्मा की आयु पूरी होती है। तदनन्तर ब्रह्मा जी की आयु पूर्ण होने पर एक कल्प पूरा हो जाता है। उस समय जो ‘महाप्रलय’ आता है, उसी को पुरातन महर्षियों ने ‘महारात्रि’ कहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |