श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
जो लोग शास्त्र के गहरे रहस्य को नहीं जानते, वे कह देते हैं कि ब्राह्मणों के हाथ में कलम रही, इसलिए उन्होंने ‘ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ है’ ऐसा लिखकर ब्राह्मणों को सर्वोच्च कह दिया। जिनके पास राज्य था, उन्होंने ब्राह्मणों से कहा- क्यों महाराज! हमलोग कुछ नहीं हैं क्या? तो बाह्मणों ने कह दिया- नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं। आप लोग भी हैं, आप लोग दो नम्बर में हैं। वैश्यों ने ब्राह्मणों से कहा- क्यों महाराज! हमारे बिना कैसे जीविका चलेगी आपकी? ब्राह्मणों ने कहा- हाँ, हाँ, आप लोग तीसरे नम्बर में हैं। जिनके पास न राज्य था, न धन था, वे ऊँचे उठने लगे तो ब्राह्मणों ने कह दिया- आपके भाग्य में राज्य और धन लिखा नहीं है। आप लोग तो इन ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों की सेवा करो। इसलिए चौथे नम्बर में आप लोग हैं। इस तरह सबको भुलावे में डालकर विद्या, राज्य और धन के प्रभाव से अपनी एकता करके चौथे वर्ण को पददलित कर दिया- यह लिखने वालों का अपना स्वार्थ और अभिमान ही है। इसका समाधान यह है कि ब्राह्मणों ने कहीं भी अपने ब्राह्मण-धर्म के लिए ऐसा नहीं लिखा है कि ब्राह्मण सर्वोपरि हैं, इसलिए उनको बड़े आराम से रहना चाहिए, धन-संपत्ति से युक्त होकर मौज करनी चाहिए इत्यादि, प्रत्युत ब्राह्मणों के लिए ऐसा लिखा है कि उनको त्याग करना चाहिए, कष्ट सहना चाहिए; तपश्चर्या करनी चाहिए।
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