श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टम अध्याय
अवतरणिका श्रीभगवान ने सातवें अध्याय के अंत में अपने समग्ररूप का वर्णन करते हुए ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ- इन छः शब्दों का प्रयोग किया और इस समग्ररूप को जानने वाले योगियों को अंतकाल में अपनी प्राप्ति बतायी। इसको सुनकर इन छः शब्दों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए अर्जुन आठवें अध्याय के आरंभ के ही श्लोक में कुल सात प्रश्न करते हैं। अर्जुन उवाच किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम । अर्जुन बोले- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत किसको कहा गया है? और अधिदैव किसको कहा जाता है? यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस देह में कैसे है? हे मधुसूदन! नियतात्मा मनुष्य के द्वारा अंतकाल में आप कैसे जानने में आते हैं? व्याख्या- ‘पुरुषोत्तम किं तद्ब्रह्म’- हे पुरुषोत्तम! वह ब्रह्म क्या है अर्थात ‘ब्रह्म’ शब्द से क्या समझना चाहिए? ‘किमध्यात्मम्’- ‘अध्यात्म’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है? ‘किं कर्म’- कर्म क्या है अर्थात ‘कर्म’ शब्द से आपका क्या भाव है? ‘अधिभूतं च किं प्रोक्तम्’- आपने जो ‘अधिभूत’ शब्द कहा है, उसका क्या तात्पर्य है? ‘अधिदैवं किमुच्यते’- ‘अधिदैव’ किसको कहा जात है? ‘अधियज्ञः अथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्’- इस प्रकरण में ‘अधियज्ञ’ शब्द से किसको लेना चाहिए। वह ‘अधियज्ञ’ इस देह में कैसे है? ‘मधुसूदन प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः’- हे मधुसूदन! जो पुरुष वशीभूत अंतःकरण वाले हैं अर्थात जो संसार से सर्वथा हटकर अनन्यभाव से केवल आप में ही लगे हुए हैं, उनके द्वारा अंतकाल में आप कैसे जानने में आते हैं? अर्थात वे आपके किस रूप को जानते हैं और किस प्रकार से जानते हैं? संबंध- अब भगवान आगे के दो श्लोक में अर्जुन के छः प्रश्नों का क्रम से उत्तर देते हैं। |
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