श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय संबंध- पूर्वश्लोक में भगवान ने अर्जुन से कुरुवंशियों को देखने के लिए कहा। उसके बाद क्या हुआ- इसका वर्णन संजय आगे के श्लोकों में करते हैं।
अर्थ- उसके बाद पृथानंदन अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित पिताओं को, पितामहों को, आचार्यों को, मामाओं को, भाइयों को, पुत्रों को, पौत्रों को तथा मित्रों को, ससुरों को और सुहृदों को भी देखा। व्याख्या- ‘तत्रापश्यत्....... सेनयोरुभयोरपि’- जब भगवान ने अर्जुन से कहा कि इस रणभूमि में इकट्ठे हुए कुरुवंशियों को देख, तब अर्जुन की दृष्टि दोनों सेनाओं में स्थित अपने कुटुम्बियों पर गयी। उन्होंने देखा कि उन सेनाओं में युद्ध के लिए अपने-अपने स्थान पर भूरिश्रवा आदि पिता के भाई खड़े हैं, जो कि मेरे लिए पिता के समान हैं। भीष्म, सोमदत्त आदि पितामह खड़े हैं। द्रोण, कृप आदि आचार्य[1] खड़े हैं। पुरुजित, कुंतिभोज, शल्य, शकुनि आदि मामा खड़े हैं। भीम, दुर्योधन आदि भाई खड़े हैं। अभिमन्यु, घटोत्कच, लक्ष्मण[2] आदि मेरे और मेरे भाईयों के पुत्र खड़े हैं। लक्ष्मण आदि के पुत्र खड़े हैं, जो कि मेरे पौत्र हैं। दुर्योधन के अश्वत्थामा आदि मित्र खड़े हैं और ऐसे ही अपने पक्ष के मित्र भी खड़े हैं। द्रुपद, शैव्य आदि ससुर खड़े हैं। बिना किसी हेतु के अपने-अपने पक्ष का हित चाहने वाले सात्यकि, कृतवर्मा आदि सुहृद भी खड़े हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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