|
श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
षष्ठ अध्याय
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे
आत्म-संयम योगो नाम षष्ठोऽध्यायः।।
अर्थ- इस प्रकार ऊँ, तत्, सत्- इन भगवन्नामों के उच्चारणपूर्वक ब्रह्मविद्या और योगशास्त्रमय श्रीमद्भगवद्गीतोपनिषद्रूप श्रीकृष्णार्जुनसंवाद में ‘आत्म-संयम योग’ नामक छठा अध्याय पूर्ण हुआ।
आत्मसंयम अर्थात मन का संयमन करने से ध्यानयोगी को योग (समता) का अनुभव हो जाता है; अतः इस अध्याय का नाम ‘आत्म-संयम योग’ रखा गया है।
छठे अध्याय के पद, अक्षर और उवाच
- इस अध्याय में ‘अथ षष्ठोऽध्यायः’ के तीन, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के दस, श्लोकों के पाँच सौ तिहत्तर और पुष्पिका के तेरह पद हैं। इस प्रकार संपूर्ण पदों का योग पाँच सौ निन्यानबे हैं।
- ‘अथ षष्ठोऽध्यायः’ के छः, ‘अर्जुन उवाच’ आदि पदों के तैंतीस, श्लोकों के एक हजार पाँच सौ चार पुष्पिका के सैंतालीस अक्षर हैं। इस प्रकार संपूर्ण अक्षरों का योग एक हजार पाँच सौ नब्बे है। इस अध्याय के सभी श्लोक बत्तीस अक्षरों के हैं।
- इस अध्याय में पाँच ‘उवाच’ हैं- तीन ‘श्रीभगवानुवाच’ और दो ‘अर्जुन उवाच’।
छठे अध्याय में प्रयुक्त छंद
इस अध्याय के सैंतालीस श्लोकों में से पहले और छब्बीसवें श्लोक के प्रथम चरण में ‘भगण’ प्रयुक्त होने से ‘भ-विपुला’; दसवें, चौदहवें और पचीसवें श्लोक के प्रथम चरण में तथा पंद्रहवें, सत्ताईसवें, छत्तीसवें और बयालीसवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘नगण’ प्रयुक्त होने से ‘न-विपुला’; और ग्यारहवें श्लोक के तृतीय चरण में ‘रगण’ प्रयुक्त होने से ‘र विपुला’ संज्ञा वाले छंद हैं। शेष सैंतीस श्लोक ठीक ‘पथ्यावक्त्र’ अनुष्टुप छंद के लक्षणों से युक्त हैं।
|
|